पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२७३)

के लिए प्रवृक्ष बाबू' शब्द में वह व्युत्पत्ति गृहीत न होगी। आदरार्थ ‘बाबू' शब्द यहाँ बापू' का भाई-बन्धु है। लाला लाजपत राय से ‘लाला' शब्द् कौन हटा सकता है ? परन्तु पंजाब-केसरी, स्व० लाला लाजपत राय ने देश को अपना सब कुछ दे दिया था। वे 'ला ला’ वाले न थे, देनेवाले थे । वहाँ ‘लाला’ शब्द की प्रवृत्ति महान् सम्मान प्रकट करने के लिए है । वे 'लाल' थे । | हिन्दी में संस्कृत के (तद्रूप) कृदन्त शब्द बहुत बड़ी संख्या में गृहीत हैं । इन के बिना हिन्दी की साहित्यिक काम चल ही नहीं सकता । हाँ, साधारण व्यवहार के लिए हिन्दी के अपने ही कृदन्त शब्द बहुत हैं। साधारण व्यव- हार में संस्कृत का संमार्जनी' कृदन्त शब्द नहीं चलता, जिस का अर्थ वही हैं, जो ‘बुहारी’ का । संमार्यतेऽनयेति सम्माजनी—इस से सम्मार्जन (सफाई) करते हैं; इस लिए इसे सम्मार्जनी' कहते हैं । “कराधिकरणयोर्युट् से कुरण-प्रधान ल्युट्' प्रत्यय हैं, जिसे 'अन' हो जाता है। फिर स्त्री प्रत्यय हो कर ‘सस्मार्जन’ ! हिन्दी का एतदर्शक अपना “बुहारी’ कृदन्त है; वहीं करण-प्रधान ! घर बुहारने के लिए बुहारी' और सड़क अदि झाड़ने के लिए झाडू । 'सम्माजनी' की यहाँ जरूरत नहीं । परन्तु कहीं-कहीं ‘कृदन्त संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप हिन्दी ( क्री ‘बोलियों' ) में चलते हैं । कुर से पानी निकालने की रस्सी को कानपुर के इधर-उधर बहनी' कहते हैं, जो संस्कृत उद्वाहन छ तद्भव रूप है—उत् ऊर्ध्व वाह्यते ( जलादिकम् ) अनयेति, ‘उद्वाहनी' । जल अादि ऊपर खींचने की रस्स, उद्वानी' । ब्रज में ‘इन’ को ‘लेजू' कहते हैं, जो इज्जू का तद्भव रूप है। उन्हनी कृदन्त-तद्भव अधिक अच्छः । परन्तु साहित्य में, या अधिक गम्भीर शिष्ट इनों की हिन्दी में संस्कृत के तद्रूप कृदन्त शब्द बहुत अधिक चलते हैं । साहित्य में तो ऐसे शब्दों के बिना हिन्दी का झाम ही नहीं चलता। हाँ, कविता तथा कहानी-उपन्यास आदि में सरल हिन्दी { संस्कृत कृदन्तों के बिना भी } खूब ३ल सकती है; चलती रही हैं। इस प्रकार का साहेिको ऐसी ही भाषा में खिलता है। परन्तु व्याकरण, भाषा-विज्ञान, दर्शन-शान्न तथा विज्ञान की विविध शाखा झा गम्भीर साहित्य संस्कृत के कृदन्त, तद्धितान्त तथा समस्त तद्रूप शब्द के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता । मैं ने बोल-चाल की साधारण