पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३३

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( २ ) यह व्याकरण हिदी के आधुनिक स्वरूप और उसकी प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए संस्कृत का अवश्यक अधार ग्रहण करके आधुनिक पद्धति पर लिखा जाय । यदि इस विषय की कोई योजना उन्होने बनाई हो तो उसे विचारार्थ मॅगा लिया जाय ! इस बीच वे अपनः लेखन कार्य चालू रखें । ( ३ ) व्याकरण में जो उदाहरण दिए जायँ वे हिंदी के मान्य लेखकों के ग्रंथों से ही लिये जायँ । इसके अतिरिक्त व्याकरण-परामर्श-संडल का संघटन इस प्रकार किया गया । १-श्री करुणापति त्रिपाठी ( संयोजक ) २-श्री कृष्एानंद ३-श्री विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ४---श्री इ० इजारीप्रसाद द्विवेदी ५-श्री चंद्रबली पाडेय ६–श्री डा० सुनीतिकुमार ब्राज्य ७-श्री काका कालेलकर ८-श्री अंबिकाप्रसाद वाजपेयी ६--श्री राहुल सांकृत्यायन १०--श्री श्रीकृष्ण लाल बाजपेयी जी के अथक परिश्रम, संयोजक श्री पं० करुणपति त्रिपाठी की तत्परता तथा व्याकरण-परामर्श-मंडल के सदस्यों की संमतियों और सुझावो से व्याकरण-निर्माण का कार्य सुचारू रूप से चलता रहा और दो साल में ही पूरा व्याकरण लिखकर तैयार हो गया। हिंदी व्याकरण-निर्माण का यह चौथा दौर था जिसमें शास्त्रीय चिंतन और सूक्ष्म विश्लेषण की प्रवृत्ति प्रधान रही । परंतु इस व्याकरण के छपने में जो एक साल का विलंब हो गया उसका कारण यह था कि ब्याकरण-परामर्श-मंडल के सदस्य और पं० किशोरीदास जी वाजपेयी कुछ बातों में सहमत न हो सके । मंडल के सदस्यों ने बाजपेयी जी की इस विचारपूर्ण रचना के लिये साधुवाद देते हुए