में सर्वत्र ई-गई-बाबोड़ी' आदिः । अवधी में भी ‘वा’ ‘लाव आदि
के स्त्री-लिङ्ग रूप “आई-लाई’ होते हैं । '३' का लोप हो जाता है । जिन
कृदन्त विशेधणों या झियायों में नहीं, उन के स्त्रीलिङ्ग-रूप ( अवध
7 में } 'गै भै' जैसे हो जाते हैं ' झा स्त्रीलिङ्ग-रूप 'गै' और 'भ'
ॐ भै' । यहाँ भी दिखाई देती है—ा+ई = ‘गै' और भा+ई = ‘भै ।
परन्तु वैसे इधर के विशेष था कृदन्त क्रियाएँ संज्ञा-विभक्ति नहीं रखती है।
लड़ी-बली और राजस्थानी दो मुख्य धारा हैं। दोनों की संज्ञा-विमतियों
(‘ा' तथा 'ओ) को दूर तक प्रभाव है। ब्रजभाषा में खड़ी बोली, कन्नौज
त राजस्थानी का मिश्रण है । परिशिष्ट में अधिक कहा जाएगा; पर प्रसंग
प्राप्त यहाँ श्रावश्यक समझ लेना चाहिए।
राजस्थानी का ‘’ उपलब्ध प्राकृतों में दिखाई देता है। एकवचन
और बहुवचन विशेषण देखिए-
• प्राकृत-
राजस्थानी
एकवचन--आगद पुन्चो थोड़ो छोरो, यो लड़के
बहुवचन–अगदा पुन्हा यांङ्का छोरा, या लड़की
कदस मेल है। परन्तु बड़ी बोली में विशेषण ( कृदन्त-प्रत्ययो में }
- पुंविभक्ति लग कर बनते हैं--‘अया हुशा लड़काए हुए लड़के' ।
एकदम उलटा ! प्राप्त प्राकृत में अकारान्त विशेषण बहुवचन; पर राष्ट्रभा मैं एकवचन ! राजस्थान में प्राकृतों को पूर' अनुराम है। ऐसा जान पता है कि कोई प्राकृत ऐसी रही हो गी, जिस में विशेष ‘क्रा’ ऍविभक्ति लग कर बनते हों गे और जब एकवचन में श्रा' हुआ, तो बहुवचन ‘ए’ करना पड़ा हो गी । उस सम्भावित प्राकृत में कृदन्त विशेषण यों चल एक्व० श्रागदा पुतळाया लङकी बहु० अगदे पुत्ते---आये लड़के बहुवचन प्रकारान्त करना जरूरी 1 ईकारान्त रूप स्त्रीलिङ्ग में होते हैं- 'अाई गई । ऊकारान्त भी नहीं किए गए, क्योंकि उ ऊ' पूरी बोलियों में एकवचन है । इ' और ऊ यों गए ! 'ओ' राजस्थानी में एकवचन हैं। इन सब भ्रमों से दूर रहने के लिए पुल्लिङ्ग बहुवचन ‘ए’-लड़का-लड़के ।