इसी तरह ‘या लड़का' आए लड़के। राजस्थानी में जो डु' या ड्रो’
दिखाई देता है कृदन्त-विशेषणों में, वह वस्तुतः 'ओ-ड’ है । डु में 'ओ'
पुंविभक्ति ल झर ‘गोडो रूप बनता है ! बहुवचन रायड़ा’ ! पुस्तक
म्हारी पढ़ोड़ी छे'-पुस्तक मेरी पढ़ी हुई है। यह श्रोड़ सामने आता है,
तब कृदन्द ‘अ’ का स्वर उड़ जाता है । बायोड़ -- r="इथोड़ो' ! 'हो'
धातु से ही श्रोड़ चाहे निकला हो ! गया हुआ-*गयोड़ो' और 'राई हुई-
थोडी ! यह, प्रासंगिक चच
उद्देश्य-विशेषणों का प्रयोग
ऊपर उदाहरणों में जो विशेषणे आए हैं, उन की या तो द्विरुक्ति है;
या फिर “हुश्रा' का योग है। परन्तु उद्देश्य-रूप से झाने वाले विशेषणों में ये
दोनो उपाधियाँ प्रायः नहीं रहती--
१-आते-जाते छात्र को दे देना
२-चलती गाड़ी को रोकना ठीक नहीं ।
३-बढ़ता रोजगार कौन छोड़ता है ?
- आते-जाते में द्विक्ति नहीं है । ना’ और ‘जुना विभिन्न क्रियाएँ
हैं। ‘ाना-जाना' और 'ता-जाता’ ग्रादि समस्त पद हैं । अतः और लाता' विशेषण का ससास है। अनेक विशोष झा भी परस्पर समास होता है। समाल और एंदिभक्ति का अलोप' । संस्कृत में भी अनेक जगह समाप्त होने पर विभुक्ति का लोप न होता है हिन्दी में केवल पुंबिभक्ति की ही यह स्थिति है; अन्ये १ को–ने आदि ) कारक विभक्तियों की नहीं। आते-जाते में ‘अ’ को ‘' हो गया है; इस लिए फि विशेष्य { छात्र ) ॐ झा को विभक्ति हैं। यदि विशेष्य के झा ऐसी कोई विभक्ति न हो, तब ( एकवचन में ) *श्रा' से 'g' कभी भी न ही गा- श्रीता-यात छान दिखाई देता है। ‘बढ़ता रोजगार कौन छोड़ता है ? इसी तरह भूत काल के “अ' प्रत्यय में भी ~ १-या रुझ्या छोड़नः न चाहिए २–गा समय हाथ नई आता