पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२४

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इसी तरह ‘या लड़का' आए लड़के। राजस्थानी में जो डु' या ड्रो’ दिखाई देता है कृदन्त-विशेषणों में, वह वस्तुतः 'ओ-ड’ है । डु में 'ओ' पुंविभक्ति ल झर ‘गोडो रूप बनता है ! बहुवचन रायड़ा’ ! पुस्तक म्हारी पढ़ोड़ी छे'-पुस्तक मेरी पढ़ी हुई है। यह श्रोड़ सामने आता है, तब कृदन्द ‘अ’ का स्वर उड़ जाता है । बायोड़ -- r="इथोड़ो' ! 'हो' धातु से ही श्रोड़ चाहे निकला हो ! गया हुआ-*गयोड़ो' और 'राई हुई- थोडी ! यह, प्रासंगिक चच उद्देश्य-विशेषणों का प्रयोग ऊपर उदाहरणों में जो विशेषणे आए हैं, उन की या तो द्विरुक्ति है; या फिर “हुश्रा' का योग है। परन्तु उद्देश्य-रूप से झाने वाले विशेषणों में ये दोनो उपाधियाँ प्रायः नहीं रहती-- १-आते-जाते छात्र को दे देना २-चलती गाड़ी को रोकना ठीक नहीं । ३-बढ़ता रोजगार कौन छोड़ता है ?

  • आते-जाते में द्विक्ति नहीं है । ना’ और ‘जुना विभिन्न क्रियाएँ

हैं। ‘ाना-जाना' और 'ता-जाता’ ग्रादि समस्त पद हैं । अतः और लाता' विशेषण का ससास है। अनेक विशोष झा भी परस्पर समास होता है। समाल और एंदिभक्ति का अलोप' । संस्कृत में भी अनेक जगह समाप्त होने पर विभुक्ति का लोप न होता है हिन्दी में केवल पुंबिभक्ति की ही यह स्थिति है; अन्ये १ को–ने आदि ) कारक विभक्तियों की नहीं। आते-जाते में ‘अ’ को ‘' हो गया है; इस लिए फि विशेष्य { छात्र ) ॐ झा को विभक्ति हैं। यदि विशेष्य के झा ऐसी कोई विभक्ति न हो, तब ( एकवचन में ) *श्रा' से 'g' कभी भी न ही गा- श्रीता-यात छान दिखाई देता है। ‘बढ़ता रोजगार कौन छोड़ता है ? इसी तरह भूत काल के “अ' प्रत्यय में भी ~ १-या रुझ्या छोड़नः न चाहिए २–गा समय हाथ नई आता