पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२५

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३-किया काम साथ देता है। ४--सोये लड़के को पढ़ने के लिए जगा दो ५--श्राई विपत्ति धीरे-धीरे ही टलती है । ‘हुश्रा' लगा कर भी उद्देश्य-विशेषण दिए जाते हैं- आया हुअा रुपया, गया हुआ समय, किया हुआ काम, सोये हुए लड़के, अाइ हुइ विपत्ति श्रादि । परन्तु इस के बिना भी काम जब चल जाता हैं, तब व्यर्थ जोड-गाँठ किस कामे की ? "अर्थश्चेवगतः, किं शब्देन?? यदि किसी शब्द के बिना ही काम निकल जाए, तो फिर उस का प्रयोग बेकार ! हिन्दी में तो विभक्तियाँ भी नहीं लगाई जातीं, यदि अर्थ में गड- बड़ी न पड़े । ‘मेरे हाथों यह सब काम हुआ है। यहाँ “हाथों से कहें, तो व्याकरण की दृष्टि से गलत न हो गा । ‘से' विभक्ति का स्थल है ही । परन्तु ‘हाथों' कहने से भी काम चल जाता है । यहाँ ‘में 'ने' या को’ विभक्ति लगने का भ्रम हो ही नहीं सकता । इसी लिए ‘हाथों चलता है। सो, ‘हुआ' के बिना यदि काम चल जाता है, तो उसका प्रयोग व्यर्थ !

क्रिया और विशेषण

पीछे हमने ‘त' प्रत्यय को वर्तमान-कालिक बतलाया है और गाती हुइ लडकियाँ गईं आदि में एक हँग से वर्तमान के साथ भूत का सामञ्जस्य दिखाया है। यह इस लिए कि 'आता है’ ‘जाता है' आदि क्रियायों में “त' प्रत्यय वर्तमान काल में ही प्रसिद्ध है। विशेषणों में और कृदन्त क्रियाओं में प्रत्यय वही, प्रयोग-भेद की विशेषता है। ‘राम अता है' में 'आता' क्रिया और ‘आते हुए राम को मैंने देखा' में आता (>‘ते’ ) विशेष । कुछ लोगों ने ‘अरता अया' आदि क्रियाओं को भी विशेषण मान लिया है ! यही नहीं, डा० बाबूराम सक्सेना ने तो संस्कृत रामः सुप्तः अस्ति' “बालिका सुप्त अस्ति' आदि के मुत’ ‘सुता' को भी विशेषण लिख दिया है ! यह सब चिन्त्य है। जहाँ क्रिया की प्रधानता हो, क्रिया का विधान हो, उसे ‘क्रिया' कहा जाए गा और जहाँ वह गौण हो, विधान किसी अन्य का हो, वहाँ उसे विशेषण' कहें गे । विशेषण और क्रिया में अन्तर है-- १-रामः वनं गतः ( राम वन गया )-( क्रिया ) २-वनं गतं रामं वाल्मीकिरपश्यत् (वन गए हुए राम को वाल्मीकि ने देखा ) ( विशेषण )