पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२८२)


शेर मांस खाता है ( वर्तमान ) कभी जंगली लोग नर-मांस खाते थे ( भूतकाल ) हम सब सदर ही वेद पते रहेंगे , भविष्यत् ) वह इस समय पाठ करत होगा ( संभावना ) युनः 'है' था? ' “होरा’ आदि के लगाने से त’ वर्तमान आदि प्रकट करता है, के नहीं । इस लिए इसे वर्तमान काल का प्रत्यय न कह कर सामान्य-प्रत्यर्थ कहना जाहिए-सर्वत्र निर्वाध सहयोग-सामञ्जस्य । अर्थ-भेद् से रूप-भेद हिन्दी-शब्दों में प्रायः अर्थ-भेद से ही रूप-भेद देखा जाता है । उठक

  • बैठक' अादि स्त्रीलिङ्ग भाववाचक संज्ञाएँ हैं । परन्तु बैठका अधिकरण--

प्रधान जाति-वाचक संज्ञा है । उस समय चौधरी साहब अपने बैठक में हुक्का पी रहे थे। बैठक अास्थान, चौपाल । इसी अर्थ में बैक' स्त्रीलिङ्ग भी चलता है---*अपनी बैठक में बुहार; लबादा दो । संस्कृत में भी अन्' आदि प्रत्यय भाव में तथा करण-धिर रा; आदि में होते हैं । 'आस्था' नसक लिङ्ग छुदन्त संज्ञा भावुप्रधान है---अस्थानम्-‘पदेशउम्' । स्थान’ माने बैठना । परन्तु अधिकरण प्रधान भी है-*अस्थीयते यत्र, तद् ‘ास्थान म्’--- जह सब लोग मिल कर बैठे, वह जगह-श्रास्थान' । “अस्था-सा भएडम् । स्त्रीलिङ्ग में भी इस का चलन हैं--‘अास्थानी' | ‘स्थानी’- ‘अस्थान' की ही तरह हिन्दी के बैठक-बैङका शब्द है----अधिकरण- प्रधान । ‘बंदक' भाववाचक संज्ञा अलग हैं । संस्कृत में ‘भर्सना' और

  • भत्र्सनम् । हिन्दी में ‘डॉट' और 'डॉन' ।।

संस्कृत कृदन्तों का प्रयोग संस्कृत के कृदन्त शब्दों का प्रयोग हिन्दी में विविध रूप से होता है । व्यय' शब्द संस्कृत का भावप्रधान है-'धनस्थ व्ययः----धन का व्यय । परन्तु हिन्दी में इस का प्रयोग विधेय-विशेष के रूप में प्रायः इलता है- इतना धन व्यय कर के सेठ जी ने यह यश प्राप्त किया ।' गहरा विचार करें, तो व्यथ करझा एक क्रिया है, “धन” कृर्भ है । इसी लिए ‘धन का व्यय कर के प्रयोग नहीं होता है परन्तु अपव्यय' शब्द का प्रयोग ( संस्कृत की तरह ) भाववाचक संज्ञा की ही तरह होता है----‘धन का ऐसा अपव्यय उस ने किया