पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२८

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कि दरिद्र बन गया !' यहाँ ‘धन ऐसा अपव्यय किया' न होगा। क्रिया करना भूर है। अपव्यय कर्म है ।। ‘हस नै प्रेम से कथा श्रवण की यह वाक्य संस्कृत में यों होगा-मया प्रेम कथा श्रुता'-मैं ने प्रेम से कथा सुनी । श्रुता क्रिया की जगह हिन्दी की अपनी क्रिया ‘सुनी’ लिङ्ग है । परन्तु अदर तथा गाम्भीर्य प्रकट करने के लिए ऋथा सुनी' की जगह

  • कथा श्रवण की' बोलते हैं। संस्कृत में तो कथा श्रवणम्' रह नहीं सकता ।

समास हो कर कथाश्रवणम्” हो जाएगा और फिर ‘श्रवणम्' के अनुसार

  • कृतम् नपुंसकलिङ्ग क्रिया हो । हिन्दी में ‘श्रव' पुल्लिङ्ग है; परन्तु
  • कथा श्रवण की' में 'की' स्त्रीलिङ्ग क्रिया कथा के अनुसार है। कथा के

साथ ‘श्रवण का सुभास भी नहीं । बात अटपटी जान पड़े ; परन्तु हैं बहुत सीजी । हिन्दी में पढ़ना-सुनल' अदि अपनी क्रिया में हैं, परन्तु आदर- गाम्भीर्य आदि प्रकट करने के लिए संस्कृत के श्रवण-अध्ययन' आदि शब्दों के आगे कर' ( अपनी ) धातु को प्रयोग कर के श्रवण करता है? अध्ययन करता है' इत्यादि रूप बनते-चलते हैं । तो, यहाँ क्रियः हुई-‘श्रवण करता हैं । केबल ‘करता है यहाँ क्रिया नहीं हैं । इसी लिए कथा श्रवण की आदि में था के साथ श्रव’ का सुभास नहीं । कथा कर्म है । उसी के अनुसार की क्रिया स्त्रीलिङ्ग है। देश अब क्रिया’ और ‘कथाएँ श्रश की' । कर्म ( ‘उपदेश' तथा 'कथाएँ ) के अनुसार क्रियैा के रूप } इस तरह

  • यहाँ मैं ने दुग्ध पान किया । ग्रहों यान करना” क्रिया है-“दुग्ध

कर्म है । परन्तु उस ने कुछ जलपान भी किया इस इस में हेल' कि?' क्रिया है-—ान किया' नहीं । जलपाद एक स्वतंत्र संज्ञा है। हिन्दी में-हलका खाना-पीना' । परन्तु वि पान किया शंकर ने श्रादि में पान किया क्रिया है--विध कर्म है। विधेयता पर जोर देने के लिए समास का अभाच हैं । संस्कृत में होता है या कृ अत' । परन्तु हिन्दी में सुस्त-पद्धति पर वाक' विन्यास न हो । मैंने कथा श्रुत की” हिन्दी में न हो गा; यद्यपि मुझे वह समाचार विदित है' जैसे प्रयोग होते हैं । हिन्दी में ऐसी जगह कर्ता-कारक मैं 'को' विभक्ति लगती है; य उस की बहन-'हि' > ६ । रास को वह समाचार विदित है'। ५५म' कत, समाचार कर्म और विदित विधेय-विशेषा; है' पूर्ण क्रियः । मैं ने कथा श्रवण की' की तरह मैं ने समाचार वेदल किया' बोलना चाहें, तो