पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२८४)


गलत हो गा । “मुझे इस समाचार का दिन है' यह भी हिन्दी में गलत होगा । परन्तु मुझे यह समाचार ज्ञात है और मुझे इस समाचार' झा ज्ञान है। ये दोनो प्रयोग शुद्ध हैं । मैं ने कथा श्रवण की' में 'कथा' के साथ श्रवण' को समास नहीं; क्योंकि दोनों के काम पृथकू-पृथक हैं । परन्तु “राम वेदों का अध्ययन करता है’ और ‘राम वेदाध्ययन करता है, ये दोनो ठीक हैं । राम वेद अध्ययन करता है? ऐसा न हो गी । यदि विधेयत्व विशेष प्रकट करना अभीष्ट है, तो सास किए बिना ‘राम वेद का अध्ययन करता है' कहना हो यो । साक्षा- रण अवस्था में समास हो जाएगा । अध्ययन कर्म है; करता है। क्रिया हैं । संस्कृत-रामः वेदाध्ययनं करोति' की तरह । बेद का अध्ययन, वेदों का ऋध्ययन, यों वचन-भेद बतलाने के लिए व्यवस्था है । छेद चार है । कोई एक ही वेद का अध्ययन करता है, उसे कम महत्त्व } परन्तु कथा का श्रवण किया था ‘कथा श्रवण किया' न हो शा। ये बहुत साधारण बाते हैं, जो स्वतः ज्ञात हो जाती हैं । भाषा की प्रकृति स्वतः ज्ञात हो जाती है । इस के लिए व्याकरण-प्रयत्न अनावश्यक है । इतने चर्चा प्रसंगत कर दी गई। सभी संस्कृत कृदन्त-शब्दों का हिन्दी में प्रयोग नहीं होता और जिन का होता हैं, वे भी सब एक ही पद्धति पर नहीं चलते हैं। सीता ने राम की अनुसरण किया' की तरह ‘सीता ने राम का अनुसार किया' न हो गी ।

  • अनुसार” हिन्दी में अव्यय है । इसी तरह 'अनुगमन किया होता है; ‘अनु-

गम किंया' नहीं } ‘संहार किया होता है; ‘संहरण क्रिया नहीं। यह ऐसा भेद संस्कृत में भी है । “प्रकार की जगह ‘प्रकरण' वहाँ भी नहीं चल सकता ।

२-तद्धित प्रकरण

किसी संज्ञा से, विशेषण से, या अव्यय से शब्दान्तर बनाने की पद्धति को

  • द्धित' कहते हैं । तद्धित'-प्रत्यय भाषा में नए बनते रहे हैं। पुराने लुप्त

होते रहे हैं और रूपान्तरित भी होते रहे हैं। यानी भाषा के अन्यान्य अव- यवों की ही तरह प्रत्ययों का भी उद्भव, तिरोभाव तथा रूपान्तर होता है । एक उदाहरण लीजिए। ब्रजभाषा में ‘सुन्दरताई जैसे प्रयोर बहुतायत से मिलते हैं । यहाँ ‘सुन्दरता' भाववाचक संज्ञा से फिर भाववाचक ( दूसरा ) “आई” या 'ई' प्रत्यय नहीं है; जैसा कि लोग समझा करते हैं । मैं स्वयं पहले समझता था कि सुन्दरताई' आदि प्रामादिक प्रयोग हैं-एक भाववा-