पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३४

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भी कुछ बातों में अपनी असहमति प्रकट की। ८ अरस्तु १६.५७ को व्याकरण-परामर्श-मंडल ने 'हिंदी शब्दानुशासन' को सर्व संमत और सर्वमान्य बनाने के उद्देश्य से वाजपेयी जी के संमुख कुछ अपने सुझाव रखे थे जो इस प्रकार हैं : ( १ ) भाषा-पछु :- ( क ) भाषा अधिक संतुलित और शास्त्रानुरूप गंभीर होनी चाहिए। ( ख ) अप्रासंगिक उक्तियाँ और हलके मुहावरे न रखे जायँ तो उत्तम हो । ( २ ) बिषय-पक्ष :-- ( क ) व्याकरण शास्त्र का मेल भाषा के ऐतिहासिक विकास तथा भाषा- विज्ञान से होना आवश्यक है। ऐसे वन्य इसमें न रखे जायें जो उपर्युक्त दृष्टियों से संदिग्ध और विवादास्पद हों ।। ( ख ) वैयक्तिक प्रसंग १ अपने या अन्य लेखर्को के संबंध में ) जहाँ तक संभव हो, न आने चाहिए। सावधानी से केवल सिद्धांतों का ही अावश्यक विवेचन और विश्लेषण हो । कुछ सदस्य हिंदी { खड़ी बोली के सर्वमान्य परिष्कृत रूप ) के अतिरिक्त बोलियों का भी व्याकरण परिशिष्ट में देना चाहते थे । उसके संबंध में मंडल ने सुझाव दिया कि इस व्याकर ग्रंथ में बोलियों अथवा उपभाषाओं का व्याकरण अनिवार्य रूप से अपेक्षित नहीं । यदि संभव हो तो हिंदी के सभी साहित्यसंपन्न उपभाषा के व्याकरण की संक्षिप्त रूपरेखा दी जा सकती है । | पं० वाजपेयी की अपनी एक विशिष्ट शैली है। सभा चाहती थी कि उस विशिष्टता की रक्षा करते हुए उसे कुछ अधिक गंभीर और शास्त्रानुरूप बनाया जाय परंतु वालपेयी जी और मंडल के सदस्यों में पूर्ण सहमति न हो सकी । यह असहमति शैली, सिद्धांत और वर्तनी तीनों ही क्षेत्र में कुछ कुछ बनी रह गई । शैली और सिद्धांत के विषय में ऊपर लिखा जा चुका है । वर्तनी के संबंध में सभा की एक निश्चित पद्धति रही है। बीसौं वर्ष पूर्व सभा, संमेलन और हिंदुस्तानी एकेडेभी के प्रतिनिधियों ने मिलकर एक सर्वमान्य वर्तनी का निश्चय किया था जिसका व्यवहार पिछले बीस वर्षों से