पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३३७

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परन्तु यह कौन है किवाड़ खटखटाने वाला ?' यों वाला' के विश्लिष्ट प्रयोग भी होते हैं। बेचनेवाला’ और ‘बेचने वाला यों द्विविध प्रयोग होते हैं । ‘ओं' विकरण अरने पर तो प्रायः विश्लिष्ट ही प्रयोग होता है---‘हाथियो। वाला जैल’ ! केवल इस ‘वाला' प्रत्यय में ही यह बाते हैं; अन्य किसी भी प्रत्यय में नहीं । इस तरह का अपवाद समास-प्रकरण में भी एकाध जगह मिले गा ! १० महावीर प्रसाद द्विवेदी कृत 'शिक्षा' ग्रन्थ मैं ने अब तक नहीं देखा ।' यहाँ ‘कृत' का विश्लिष्ट प्रयोग है। ‘द्विवेदीकृत' कर दें, तो “मड़- वीर' तथा प्रसाद मुझक् पड़ जाएँ ये है ये सब बातें समास-प्रकरण में आएँगी । यहाँ इतना समझिए कि कहीं किसी प्रत्यय का, या ( समास में )

  • शब्द’ का विश्लिष्ट प्रयोग भी हिन्दी में होता है ।।

एकरूप दिखाई देनेवाले विविध प्रत्यय हिन्दी में हैं । “ई” की ही तरह अ' प्रत्यय भी अनेक हैं । कोई 'आ' स्वार्थ में आता है, जैसे बोझ'- बोझा ! कोई ‘अ’ तद्वत्ता प्रकट करता है—भाववाचक संज्ञाओं को विशेष बनाता हैं--प्यास जिसे लगी हो, वह *प्यासा' । भूख से भूखा । जिस में 'मैल' हो, वह मैला' । जो प्यार का पात्र हो, वह प्यारा' । और–बजाज लोगों का बाजार ---‘बजाजा' । तथा सराफ जनों का बाजार ‘सराफा' । यों कई श्रा' प्रत्यय हैं। एक ही 'अ' प्रत्यय विभिन्न अर्थ प्रकट करता है; ऐसा न लिखना चाहिए। अर्थभेदात् शब्दभेदः-जितने अर्थ, उतने शब्द; जितने अर्थ, उतने प्रत्यय । रंग-रूप एक होने से क्या ? असली चीज ‘अर्थ’ है। सेंधा नमक को यह न कह देंगे कि यह मिसरी नमकीन है !! ‘मिसरी' या ‘फिटकरी' को सेंधा नमक न कही जाए' ग ।। | ‘शाह' से 'शाही' भाववाचक संज्ञा है । 'शाही' विशेषण भी है--‘शाही खर्च’। परन्तु भाववाचक संज्ञा शाही’ का प्रयोग कुछ इस रूप में चला कि हिन्दी-उर्दू में ‘शाही’-एक प्रकार का तद्धित प्रत्यय समझा जाने लगा—लोक- शाही, नादिरशाही, डायरशाही अादि । यह ‘शाही’ कभी-कभी संस्कृत शब्द में भी लगता हैं; यह बात लोकशाही' से स्पष्ट है । ‘लोकशाही’–लोकतंत्र और नौकरशाही'.- ‘ब्यूरोकेशी । नादिरशाही' के वजन पर ‘नेताशाहीं आदि शब्द का प्रयोग स्वेच्छाचारिता प्रकट करने के लिए किया जाता है। यहाँ 'नेता' शब्द से शाही’ है; ‘नेतू' शब्द से नहीं । यदि ‘शाही’ के साथ 'नेता' का समास मानें, तो भी स्थिति वही है। इसी लिए प्राचीन हिन्दी-साहित्य