पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३३९

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पर ) समवेत-इकट्ठा-इकट्ठ' । 'ठाउँ' के बैं' का लोप और पूर्व में ‘ट कर श्रीगम । पुंविभक्ति का योग या छाथा । यो ‘इकट्ठा' समस्त पद हुआ । | परन्तु इकलौता तो स्पष्ट ही तद्धित-शब्द समझिए; क्योंकि ‘लौता न कोई सार्थक शब्द ऐसा हिन्दी में है कि जो यहाँ समझा जाए; न किसी वैसे शब्द का संस्कार ही यहाँ जान पड़ता है। फलतः मात्र के अर्थ में “लौत' तद्धित प्रत्यय ‘क’ शब्द से और पुविभक्ति का योग । ‘क’ को ‘इक' हो गया-इकलौता' } एक मात्र पुत्र ‘इकलौता और पुत्र ‘इकलौती । किसी- किसी ने “इकला+ऊत' विग्रह कर के ऊत’ को ‘भूत’ को रूप माना-लिखा है । इस तरह यह समस्त पद ठहरता है । परन्तु (हिन्दी में) भाषा-विज्ञान से या व्याकरण के नियमों से पूत’ का ऊत' होना कहीं देखा-सुना नहीं और ब्रज में तथा मेरठ श्रादि में जो ऊत' शब्द चलता है, उस का अर्थ पूत' के कतई समीप नहीं । “ऊत’ शब्द धूर्त या उपद्रव के अर्थों में चलता है । पुत्र के अर्थ में ऊत’ कभी-कहीं देखा-सुना नहीं। हाँ, कभी कभी कोई ऊत ‘बेबकुफ के अर्थ में या वंचित-वेगारी के अर्थ में भी ऊत' का प्रयोग कर देता है। ‘मनोहर जंगली' का एक दोहा है-‘धी जमाई ले आए, बहुएँ ले गई पूत । कहै ‘मनोहर जंगली' तू रहा ऊत का ऊत !' इस लिए ‘इकलौती’ निश्चय ही तद्धित शब्द है। प्रत्यय भी सार्थक शब्दों के ही घिसे-घिसाए रूप हैं, यह कह सकते हैं और हम मानते भी हैं । परन्तु व्याकरण में तद्धित तथा सामासिक पदों का श्रे-विभाजन यों है--जहाँ उत्तरांश किसी प्रचलित या ज्ञात सार्थक शब्द का अवशेष जान पड़े, वहाँ समस' और जहाँ वह बात न हो- उत्तरोश स्वतः एकदम निरर्थक जान पड़े, वह तद्धित-शब्द । कोई अाधार चाहिए । इस व्याख्या से ऐसा जैसा' आदि शब्द तद्धितान्त नहीं, ‘समस्त ठहरते हैं। हिन्दी-व्याकरण में ‘सा” को तद्धित प्रत्यय मान कर ‘ऐसा अादि को तद्धितान्तु शब्द लोगों ने बताया है। जो गलत है । कारण, यहाँ उभय अंश सार्थक दिखाई देते हैं । ऐसा में ‘यह’ और ‘सा’ साफ दिखाई देते हैं । वृत्ति में “यह' और 'वह' को 'इ'-उ’ होते प्रायः देखा जाता है इस श्रोर ‘इधर' और उस ओर उधर' | यहाँ “यह'वह' से “धर' प्रत्यर्थ है। दिशा-अर्थ में । “धर' प्रत्यय होने पर यह’ को ‘इ’ और ‘बह’ को 3' हो गया है। एक कोशकार ने ‘उधर' को 'उत्तर' का विकास माना-लिखा है !