पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२९६)


मैं गया' न बोला जाएगा । परन्तु कानपुर आदि की जन-बोली में तहाँ उइ की करते हैं? बोला जाता है । यह ‘तहाँ की जगह ‘हुअन’ भी बोलते हैं, जो वर्ण-व्यत्यय और उ’ को वि' तथा 'भ' को अनुनासिक कर देने पर वहाँ हो जाता है । ब्रजभाषा में नहँ-तह भी हो जाते हैं। कहाँ’ को ‘कहूँ भी हो जाता है; परन्तु वहाँ’ को ‘यहँ नहीं होता ! शब्द-प्रवृत्ति ही तो ठहरी ! ‘योग’ को ‘जोगी' बन जाता है; पर 'वियोगी’ को ‘विजोगी कभी भी नहीं हो सकती ।। कभी-कभी किसी शब्द के वजन पर भी दूसरे शब्द गढ़े ग८ हैं और तब प्रत्यय-भेद करना हो गई । “यह सर्वनाम से प्रकार या ‘तरह' के अर्थ मे ‘ओं' प्रत्यय हुआ और श्राद्य व शेष रह कर बाकी सब प्रकृत्यंश उड़ गया—यह + ='थों' । यो- इस तरह } जत्र ‘यों बन गया, तब जो अदि से भी उसी तरह के रूप बने । परन्तु प्रत्यय करने पर 'जों’ ‘कों श्रादि रूप बनते-यों का मेल बिगड़ जाता ! इस लिए शेष सर्वनामों से य' प्रत्यय हुअा--ज्यों, क्यों । 'तौन' से 'त्यों भी; परन्तु ज्यों का साथ देने के लिए ही --'ज्यों-त्यों कर के परीक्षा तो पास कर ली; परन्तु अब क्या करे !' पृथक् ‘त्यों का प्रयोग न हो गर । हाँ, वह' से 'यो' प्रत्यय होता नहीं ! होता, तो “व्यों, कैसे बनता, जिस का उच्चारण हिन्दी-प्रकृति के अनु- कूल नहीं। इस लिए, ‘बह से यह प्रत्यय नहीं होता । “उस तरह उस प्रकार’ अादि बोला जाता है। वैसे भी बोलते हैं--वैसे ही कर लो न !” वैसे-उसी तरह। भाषा-विज्ञान तथा व्याकरण का विषय-विभाजन करना कुछ बहुत कठिन काम नहीं है । ‘द्वीज-द्वेज' तथा “दूज-तीज' शब्दों को ले लीजिए। द्वितीया- “तृतीया तिथियों का सद्रप प्रयोग भी हिन्दी में होता है; परन्तु जनभाषा में तथा कविता में द्वितीया’ को ‘द्वीच' 'द्वैज” तथा “दूज' भी बोलते हैं। इन में से ‘द्वीज'-'द्वैज’ को सीधे ही द्वितीया' के विकसित रूप कह सकते हैं । यहाँ प्रकृति-प्रत्यय के विभाजन की जरूरत नहीं। यानी यह व्याकरण का नहीं, भाषा-विज्ञान का क्षेत्र है। द्वितीया' के मध्य अंश का लोप, 'इ' को दीर्घता ( 'ई' अथवा 'हे' ) और ‘या’ को ‘जा’ | संस्कृत आकारान्त स्त्रीलिङ्ग शब्दों के तद्भव रूप अकारान्त हो ही जाते हैं--‘द्वीन', 'द्वैज’। पुंविभक्ति लग ही नहीं सकती, क्योंकि मूल शब्द ( द्वितीया ) स्त्रीलिङ्ग हैं। सो, “द्वील- द्वैज' में प्रकृति-प्रत्यय की कल्पना नहीं । परन्तु दूज-तीज' में प्रकृति-प्रत्यय