पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३४२

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का विभाजन हो यो । कारण, यहाँ हिन्दी के अपने दु' तथा ‘ती’ शब्दांश स्पष्ट हैं। ‘दो’ को ‘दु’ या दू’ वृत्ति में हो जाता है और तीन’ को ‘ती’- दूसरा-तीसरा' । परन्तु द्वी' अथवा '६' रूप ‘दो' से नहीं बन सकते । इस लिए ‘द्वीज' या 'द्वैज' की निष्पत्ति ‘दो से नहीं । फलतः प्रत्यय-कल्पना भी नहीं । परन्तु दूज’-‘तीज' में 'ज' तद्धित प्रत्यय है-तिथि के अर्थ में ) यह 'ज' प्रत्यय ‘द्वैन से ही लिया है, इस में सन्देह नहीं । चौथ' में भी ‘चार' से 'थ' प्रत्यय है, तिथि-अर्थ में । यह प्रत्यय संस्कृत से लिया है।

  • ञ्चार' को वृत्ति में ‘चौ’ हो ही जाता है—चौराहा, चौमुही आदि। पुल्लिङ्ग

चौथा विशेषण, और स्त्रीलिङ्ग ‘चौथ' संज्ञा । ‘पाँचैं--पञ्चमी । इसी तरह ‘सातै झाडौँ ।' पाँच' श्रादि से " प्रत्यय तिथि-अर्थ में । और छह से ‘ठि' प्रत्यय तथा १ का लोप “छठि । वृत्ति में छह’ को ‘छ' हो जाता है-छमाही'। यहीं ( वृत्ति-गृहीत ) छ' लोग भूल से पृथक भी लिखने लगे---‘छ आदमी अाए थे । खैर हुई कि तिभाही' के 'लि' को देख कर ति श्रादमी अाए नहीं चला ! | ग्यारस, बारस, तेरस, आदि इग्यारइ, बारह, तेरह आदि से हैं । 'दस’ के ‘स' को (‘ग्यारह आदि में ) 'ह' हो गया या, जो यहाँ फिर अपने उसी रूप में शब्द: विकास है। ग्यारह, बारह, तेरह आदि की प्रतिपत्ति यहाँ है ही; पर आगे 'स' दिखाई देता है; स्त्रीलिङ्ग भी है। ‘ग्यारह' और ‘ग्यारस' में बड़ा अन्तर है। यह अन्तर 'ह'---‘स' से और स्त्री पुभेद' से है। यह ‘स' हिन्दी में पृथक कोई शब्द नहीं । इस लिए ग्यारह' श्रादि संख्या-वाचक शब्दों से तिथि-अर्थ में 'स' प्रत्यय और प्रकृति के “ह' का लोप । “स” को स्त्रीलिङ्गता । यो ग्यारस' आदि तद्धित-शब्द' ।। ग्यारह' आदि के ह’ को ही तिथि-अर्थ में ‘सु' कहें और स्त्रीत्व भी मानें, तब तद्धित' न कहा जाएगा। इसे निपातन' कहते हैं । | जहाँ तिथि-अर्थ न हो, वहाँ 'सर' तद्धित प्रत्यय होता है । द्वितीया तिथि --दूज' और द्वितीय कन्या दूसरी' । 'सर' में पुविभक्ति है; इस लिए बहुवचन में दूसरे और एकवचन ‘दूसरा' । यो सर' प्रत्यर्थ से विशेषण बनते हैं ।