पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३४७

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“प्रथम' एक ही है । उस के आगे सब उसई का विस्तार। हिन्दी में भी

  • पहला' एक और उस के आगे ‘दूसरा' अदि। इन सब में कृति ( ‘दो'

आदि ) की झलक स्पष्ट है । प्रथमः' कृदन्त-शब्द से ‘म’ निकाल कर (संस्कृत में) एक तद्धित’--- प्रत्यय मान लिया गया, जो कि ‘पञ्चमः” अादि में सामने है । भेदक और विशेषण | पीछे हिन्दी का सम्बन्ध-बोधक 'ई' तद्धित-प्रत्यय बताया गया, जो एकवचन-बहुवचन तथा पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग में एक रूप रहता है, बदलता नहीं है । परन्तु ‘क’ '५' 'न' सम्बन्ध-प्रत्यये भेद्य के अनुसार रूप बदलते हैं; क्योंकि इन में हिन्दी की पुंबिभक्ति ‘अ’ (r) लग्न कर इनके रूप ‘क’ ‘ए’ ‘ना' हो जाते हैं--‘रामका' 'तेरा अपना' । बहुवचन में लड़के के अनुसार

  • राम के तेरे अपने' रूप और स्त्रीलिङ्ग में लड़की के अनुसार राम की
  • तेरी’ और ‘अपनी' । 'शहरी लड़की और शहर की लड़की एक ही चीज है ।

परन्तु ई' प्रत्यय प्रायः विशेषता ही प्रकट करता है, जब कि ‘क’ ६२' न’ प्रायः संबन्ध मात्र प्रकट करते हैं । यानी ‘क’ २’ ‘न' प्रत्यय प्राथः ‘भेदक’ बनाते हैं और 'ई' प्रत्यय प्रायः ‘विशेषण' बनाता है । परन्तु २' तथा 'न' प्रत्यय भेदक' ही बनाते देखे जाते हैं-'तेरा घोड़ा अच्छा है’ ‘अपना घर अच्छी हैं । 'तू' और 'घोड़ा' तथा 'आप’ और ‘धर' विशेषण-विशेष्य रूप से नहीं हैं, भेदक-भेद्य रूप से हैं । ‘नागपुरी सन्तरा' में नागपुरी विशेषता प्रकट करता है। *नागपुर के संतरे कहें, तो यहाँ भी यह

  • क'–प्रत्ययान्त विशेषण ही है-“नागपुर के' । परन्तु 'राम

का लड़का श्रादि में ‘क’ भेदक मात्र है। लखनवी तहजीब में लखनवी' विशेषण है। यहाँ वही 'ई' प्रत्यय है, जो सदा एक- रूप रहता है। लखनऊ के ऊ’ को ‘बु' हो गयी है और वह ( “व) फिर प्रत्यय (ई) में मिल गया है-“लखनवी मुल्ला---'लखनवी इत्र श्रादि । 'लखनवी खरबूजे नहीं चलता, लखनऊ के खरबूजे' बोलते हैं। यहाँ 'लखनऊ के विशेषण है। लखनउ विशेषण भी पूरबी बोल-चाल में आता है, जो सदा एक-रूप रहता है-लखनउ खरबूजा धरो है “लखनउ खरबूजा धरे हैं “लखनउआ रेउड़ी नाभी होति हैं । होती हैं की