पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५०

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लरिका' में 'र' संज्ञा-विभक्ति से रहित है और ‘लरिका' भी तदस्थ है। यानी ‘लड़का' से 'लरिका में अन्तर है । यह पुंप्रत्यय ( ‘अ’ ) का 'विरह आगे चलते-चलते बंगाल में एकदम गायब ! इसी लिए २’ संबन्ध-प्रत्यय का हिन्दी की बोलियों में जो स्त्रीलिङ्ग रूप ‘रि' या ‘री होता है, वह भी बंगाल में नहीं-सीतार कथा'। यानी हिदी ने '२’ विभक्ति से '२' तद्धित प्रत्यय बनाया था; बँगला ने उस २' प्रत्यय को फिर विभक्ति बना बना लिया ! प्रत्यय रूप बदलता है, विभक्ति सदा एक-रस रहती है । 'क' प्रत्यय से 'के' विभक्ति जब हिन्दी ने अपनी 'रे' विभक्ति से र’ तद्धित-प्रत्यय पृथक् बना लिया, तो क’ संबन्ध-प्रत्यय को भी 'के' करके संबन्ध-विभक्ति बना लिया । २' विभक्ति से र’ संबन्ध-प्रत्यय और तब ‘क’ संबन्ध-प्रत्यय को एकारान्त कर के के संबन्ध-विभक्ति । 'के-रे ये संबन्ध-विभक्तियाँ बन गई ।। 'न' से 'ने' विभक्ति ‘आत्मनः' के रूप प्राकृतों में 'अप्पो ' 'अप्पण' श्रादि हो जाते हैं। यहाँ से को अलग कर के •ौर मधुर ‘न” के रूप में परिवर्तित कर के हिन्दी ने 'न’ संबन्ध-प्रत्यय बना लिया और पुंबिभक्ति से ‘ना' रूप-अपना, अपने, अपनी--लड़का, लड़के, लड़की । 'कृ' की ही तरह न संबन्ध-प्रत्यय हैं। इसी ‘न’ को ‘रे' की तरह ‘ने' विभक्ति बना लिया गया, जैसे कि ‘’ का 'के' विभक्ति-रूप । '२' विभक्ति का २' तष्टित-प्रत्यय बना, तो ‘कृ’ न’ संभन्ध-प्रत्यय 'के' 'ने' संबन्ध-विभक्ति बने । कर्ता-कारक की 'ने' विभक्ति का पृथक विकास है ही । निरुक्तीय बहुविधता । कभी-कभी यह ठीक-ठीक समझ में नहीं आता कि अमुक यौगिक शब्द कृदन्त है, समस्त' है, या तद्धित है ! न कमाए, बह निकम्मा' कृदन्त है; या, जो काम न करे, वह 'निकम्मा’ ‘समस्त पद है (‘निकम्मा} ! इसी तरह कड़े जिसमें लगे हों, वह कड़ाही । तद्धित प्रत्यय मानकर कड़ाही? शब्द है, या कि कृदन्त कहाई’ का ही यह रूपान्तर है ? 'हा' से निकल २०