पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५१

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कर हु’ आगे ‘’ के साथ श्री बैठा हो, तो फिर कड़ाही' भी कृदन्त ! और ‘कड़ाही से ‘कढाई मान लें, तो फिर यह ( ‘कढ़ाई' ) भी तद्धित; जिसमें

  • कड़े हों। कड़ाही' के 'ही' का म्ह’ उठ कर ‘ड्रा में श्री मिला, तो ‘ढ़ा

हो गया । हू' के ऐसे अनन्त खेल भाषा-विकास में हैं। नमूने के लिए ‘हिन्दी-निरुक्त' देख सकते हैं। तो, ‘कड़ाही' तथा 'कढ़ाई इन दो शब्दों में किसे भूल और किसे रूपान्तर मार्ने ? तब इनके कृदन्त या तद्धित होने में निश्चायक हेतु क्या है ? ऐसे शब्दों की अनेकधा निरुक्ति कर दी जाती है । दोनों का निर्माण पृथक-पृथक् मानें, तब ‘कढ़ाई कृदन्त और कड़ाही' तद्धित । एक दूसरे का विकास ही मानना हो, तो कड़ाही' से कढ़ाई भानना होगा । कारण ‘कड़ाह' शब्द सामने है । उसी का स्त्रीलिङ्ग रूप

  • कड़ाही है। दूसरे, कढ़ाई कृदन्त शब्द काढ़ने के अर्थ में जब है, तब

दूसरा ‘कढ़ाई' ( ‘कढ़ने से ) कम हुँचता है ।। संक्षेप यह किं शब्दों की बनावट देखकर उन का मूल ढूँढ़ने में दिक्कतें सामने आती हैं। इसी लिए अनेकधा निर्वचन की यास्कीय पद्धति है।

३---समास-प्रकरण

अनेक शब्द मिल कर एक पद जब बन जाते हैं, तो वह ‘सुमास' कह- लाता है। समास संज्ञा का संज्ञा के साथ, संज्ञा का विशेषण के साथ, विशेषण का विशेषण के साथ, क्रिया का क्रिया के साथ, धातु का धातु के साथ और संज्ञा झा धातु के साथ; इस प्रकार विविध रूप से होता है । अव्यय का समास संज्ञा के साथ और अव्यर्थ का अव्यय के भी साथ होता है । समझने-समझाने के लिए समास को चार श्रेणियों में विभक्त किया गया है--१-श्रव्ययीभाव २-तत्पुरुष ३-बहुव्रीहि और ४-द्वन्द्व । कर्मधारय' समास ‘तत्पुरुष' का ही एक प्रकार--भेद है और ‘कर्मधारय' का भेद ‘द्विगु’ है। परन्तु समास का विषय इतना व्यापक है कि इन व्यापक भेद से बाहर कुछ और समास रह ही जाते हैं और स्वयं पाणिनि ने ‘सह सुपा सूत्र से ऐसे समासो का विधान किया है, जो कि पूर्वोक्त श्रेणियों में नहीं आते। इसी लिए संस्कृत के वैय्याकरणों ने कहा है --‘समासश्चतुर्विध इति तु प्रायोवादः---‘समास चार प्रकार के होते हैं यह ‘प्रायोवाद है । प्रायः---