पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५६

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संस्कृत की बात है। हिन्दी में इस सन्धि की स्थिति नहीं है । 'सं सत्सदस्य हिन्दी में संस्कृत ( तद्रूप ) शब्द कोई लिखे, तो यह अलग बात है। संस्कृत से भिन्न हिन्दी की अपनी भी सन्धियाँ हैं। संस्कृत की अत्यन्त सरल प्रायः सभी सन्धियाँ हिन्दी में गृहीत हैं, जिन का व्यवहार प्रायः संस्कृत शब्दों में ही होता है। इस का यह अर्थ हुआ कि वैसी सन्धिर्यों से युक्त पद हिन्दी में संस्कृत के हैं, जो ‘तद्र प’ चलते हैं। कई संस्कृत शब्दों में समास कर के हिन्दी ने सन्धि-नियम अपने उन पर लगा हैं । यह बात दीनानाथ’ ‘मूसलाधार तथा 'सत्यानाश' आदि शब्दों से स्पष्ट है । सो, “संसद्-सदस्य' संसद-चर्चा ‘संसद्-हर्ष' आदि प्रयोग ही हिन्दी में ठीक हैं—संसदसदस्य' संसचर्चा

  • संसद्धर्ष' नहीं ।

योगाश्रम' आदि ज्यों के त्यौं चलते हैं; परन्तु कांग्रे साध्यक्ष' ठीक नहीं । सास कर के सन्धि के बिना ‘कांग्रेस-अध्यक्ष' लिखना-बोलना हिन्दी प्रकृति के अनुकूल है। इसी तरह ‘सरस्वती-उपासना’ ‘प्रभु-आदेश' जैसे सन्धि-रहित समस्त पद हिन्दी-प्रकृति के अनुकूल है.---'सरस्वत्याश्रम' तथा

  • प्रभ्वादेश' जैसे नहीं । ‘स्वास्थ्याधिकारी की अपेक्षा स्वास्थ्य-अधिकारी

अच्छा । संस्कृत में नियम है कि समास होने पर सन्धि' अवश्य होती है; परन्तु हिन्दी में ऐसी कोई विधि नहीं है। हाँ, यदि कोई अपने निवासस्थान का नाम ही ‘सरस्वत्याश्रम' रख ले, तो फिर उसे उसी तरह लिखना-बोलना होगा । ‘पितृ' 'मातृ' की तरह ‘नेतृ' से सब परिचित नहीं; इस लिए हिन्दी ‘नेता-निर्वाचन’ अच्छा, संस्कृत नेतृ-निर्वाचन' की अपेक्षा ।

समास का उपयोग

समास का उपयोग-प्रयोग हिन्दी में आवश्यकतानुसार ही होता है। अधिक प्रयोग तत्पुरुष समास का होता है, काम बहुव्रीहि का और द्वंद्व का बहुत कम् । ‘कर्मधारय’ भी हिन्दी में बहुत कम चलता है। तत्पुरुष में षष्ठीतत्पुष' या ‘सुश्बन्ध-तत्पुरुष' का ही चलन अधिक है । विद्यालय, पुस्तकालय, छात्रावास आदि योग-रूढ शब्दों को तो अलग कर ही नहीं सकते; परन्तु साधारण प्रयोग भी समास के बिना नहीं जमते ।

  • कांग्रेस-अध्यक्ष का आदेश. है; इसे कांग्रेस के अध्यक्ष का देश है।