पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५७

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लिखें--बोले, तो सम्बन्ध-प्रत्यय का दो बार प्रयोग वैसा अछा नहीं लगता है। कांग्रेस के अध्यक्ष की जगह यहाँ कांग्रेस-अध्यक्ष’ ठीक रहे गा। परन्तु कांग्रेस का अध्यक्ष जब कहता है, तब तो बात माननी ही पड़ती है यहाँ समास के बिना ही अच्छा । समास कर देने से विधेयता कमजोर पड़ जाएगी, ‘कांग्रेस का जोर कम पड़ जाए गा । द्वन्द्व-समास हिन्दी में बहुत कम चलता है । कविता में कहीं-कहीं प्रयोग होते हैं । गद्य में भी (तत्पुरुष' की उपस्थिति में )----युधिष्ठिरार्जुन-संवाद' से कई बातों पर प्रकाश पड़ता है। “भाई-बहन’ ‘माता-पिता' आदि तो चलते ही हैं । संस्कृत में इन्द्र-समास को बहुत अधिक चलन है—रामः कृष्णः गोविन्दः मुरारिश्च' कहने की अपेक्षा-‘रामकृष्णगोविन्दमुरारयः कहने में सुभीता है। चार बार विसर्गों का प्रयोग न करना पड़ा। परन्तु हिन्दी में ऐसी कोई बात ही नहीं--विसर्ग आदि हैं ही नहीं-'राम, कृष्ण, गोविन्द और मुरारी श्री गए । “रामकृरुण-योविन्द-मुरारी या गए' न हो गए । संस्कृत ‘मुरारिः' में सम्बन्ध-तत्पुरुष है। हिन्दी में ‘मुरारी होता है; यानी ‘अरि’ की ‘इ दीर्घ हो जाती है----‘मुरारी लाल' । ‘मुरारि लाल नहीं चलता । फर्मधारय का भी प्रयोग हिन्दी में प्रायः नहीं के बराबर है; क्योंकि विभक्तियों की बचत का सवाल ही नहीं। नीलम् कमलम् पश्यामि' को नीलकमलं पश्यामि' कर दें, तो 'नील' की विभक्ति का उच्चारण नहीं करना पड़ता । परन्तु हिन्दी में विभक्ति-बचत की बात ही नहीं । इसी लिए नील कमल मैं देख रहा हूँ चलता है—'नीलकमल' नहीं । ‘मधुर दुग्ध पी कर कुछ खेलो' चलता है, ‘मधुरदुग्ध नहीं। 'संमास' का अर्थ है संक्षेप । जब संक्षेप पहले ही है, तो समास क्या ?

तत्पुरुष और अव्ययीभाव

तत्पुरुष-समास में अन्तिम पद प्रधान होता है और अव्ययीभाव में पूर्व पद । तल्पुरुष समास में पर पद के अनुसार सब काम होता है । उसी की प्रधानता होती है-'पुष्पलता मैं ने देखी’ और ‘लतापुष्प मैं ने देखे' । दोनो जगह अन्तिम पर्यों के अनुसार क्रिया-रूप हैं । “अप की पुष्पलता और

  • आप के लतापुष्प । ‘लतपुष्प आए। पुष्प' अए हैं, ‘लता नहीं ।