पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५८

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अव्ययीभाव समास में पूर्व पद प्रधान होती है। यथा - शक्ति सर्वं करिष्यामि'-शक्ति के अनुसार सब करूं गा । यहाँ शक्ति' पर नहीं, “यथा' पर विधेयता है। हिन्दी में अनुसार अव्यय है और इस का पर-प्रयोग होता है---श्रीज्ञानुसार, बुद्धि-अनुसार, आदि। थानी यह तत्पुरुष समास नहीं है। इसी लिए-आप की आज्ञानुसार जैसे प्रयोग होते हैं। ‘अपनी इच्छानुसार' । ‘अनुसार” हिन्दी में अव्यय है-* पुल्लिङ्घ, न स्त्री- लिङ्ग ! -अप की और अपनी संबन्ध-प्रत्यय भेदक “आज्ञ' तथा 'इच्छा' (भेद्य) के अनुसार हैं । लोग इसे भूल से तत्पुरुष-समास समझ कर--प के आज्ञानुसार गलत प्रयोग कर देते हैं। अनुसार हिन्दी में कोई संज्ञा नहीं है कि पुल्लिङ्ग हो और तत्पुरुष-समास में छाए । “अनुसरण' अवश्य भाव- वाचक संज्ञा है--उसे भी मेरा अनुसरण करना पड़ा' । अनुसार करना पड़ा न हों गा । आप के आदेशानुसार में अप के पुंनिर्देश ‘सामान्य प्रयोग नहीं है। पुविवक्षा के अभाव में भी पुल्लिङ्ग हिन्दी में चलता है; कौन कहता है कि हम कमजोर हैं ??? यहाँ कहता है। सामान्य प्रयोग है।

  • पुरुष'-'स्त्री' सब गृहीत हैं। पर ‘अनुसार' तो अव्यय है और उस के योग

में 'के' '२' 'ने' विभक्तियाँ लगें गी; संबन्ध प्रत्यय नहीं। गाँव के भीतर और वनस्थली के 'बाहर’। भीतर-बाहर अव्यय है; पुल्लिङ्ग, न स्त्रीलिङ्ग । परन्तु यहाँ सामान्य निर्देश में का’ का ‘के रूप न समझ लेना । यहाँ ‘के विभक्ति है । अव्यय के योग में ‘गाँव के भीतर, बाहर, ऊपर, नीचे, इधर, उधर { सर्वत्र 'के' विभक्ति है ।

समास में शब्दों का रूपान्तर

समास में शब्दों का रूपान्तर जो देखने में आता है, उस में स्वाभाविक कारण शब्द-विकास की प्रवृत्ति है। कभी आद्य अंश में कुछ परिवर्तन होता है. कभी सुध्य में और भी अन्त में । मुहीं' में आदि-अन्त उभयत्र परिवर्तन है-'दो' को 'दु’ और ‘मुहँ’ को ‘मुहीं। ‘पीहर में मध्य-परिवर्तन भी है। ‘पितृगृह' संस्कृत में ‘यमलोक' को कहते हैं। शकुन्तला पितृगृह गई' कहने से अमङ्गल की { अनिष्ट ) व्यञ्जनः हो सकती है। जो संस्कृत से परिचित हैं, उन्हीं के मन में अमङ्गल-व्यञ्जना हो सकती है, दूसरों को नहीं । परन्तु संस्कृतज्ञों के मन में भी क्यों हो १ हिन्दी ने पीहर समस्त पद बना लिया । पिता का घर---पीहर' । “ता' का लोप, इकार को दीर्घता और ‘घ' से 'ग्' अंश का लोप--‘पीहर' ।