पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३५९

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‘इकबारगी' में ‘एक’ को ‘इक है और ‘गी सभालान्त प्रत्यय । एक बार में ही–‘इकबारगी'। 'दुबारा' में उभयत्र परिवर्तन है। दूसरी बार- ‘दुबारा । 'दो' को “टु’ और ‘बार' के आगे पुंबिभक्तिं । 'दुमुह में ‘ई स्त्री प्रत्यय है। ‘दुपहर' में 'ई' विकल्प से--“दुपहर-दुपहरी’। दोपहर या दोपहरी' लिखना-बोलना गलत है; जैसे कि ‘चौराहा' को चाराहा कहना । इकतारा'-एक तार हो जिस ( बाजे में ), वह इकतारा' । 'एक को ‘इक’ और ‘तार' के आगे पुंविभक्ति । “एकतारा' लिखना-बोलना गलत है। ‘सतनुजा’ को ‘सातजा नहीं कर सकते । परन्तु सुतसूत्री’ न होगा--- ‘सप्तसूत्री' संस्कृत शब्द से काम चले गा । इसी तरह ‘द्विसूत्री' या त्रिसूत्री’ कार्यक्रम । “दो-सूत्री’ ‘तीन-सूत्री’ गलत हैं। ‘दुसूती’ अन्य चीज है-दो सूतों में बट दे कर बनाया हुआ वस्त्र-“दुसूती'। ‘दुहरी’ को ‘दोहरी' कर देने से भ्रम भी संभव है--‘दोहरी चादरें हमारे यहाँ हैं' कहने से दो हरी चादरें भी कोई समझ सकता है। 'जुगाली' में ‘दो’ को ‘दु' और फिर इसे 'जु’ हो गया है। निगले हुए भोजन को दुबारा गालो में ला कर चबाने की क्रिया-‘जुगाली।

समास में पूर्वोत्तर पद

समासों में पदों के पूर्वोत्तर स्थापन की सुनिश्चित विधि है। तत्पुरुष में प्रधान था मुख्य पद अन्त में रहता है---‘मंत्री-पद का महत्त्व सब समझते हैं। यहाँ ‘पद' पर जोर है । उसी के संबन्ध में कुछ कहना है । वही मुख्य या प्रधान है। परन्तु बाणिज्य-मंत्री बहुत योग्य हैं' में मंत्री प्रधान या मुख्य पद है। ‘राजपुरुष आता है' में 'पुरुष' की प्रधानता है; परन्तु वन- राज' में 'राजा' प्रधान है । 'रणजित' का अर्थ है-रण में जित ( पराजित) हार हुन्न’ और ‘जितरण' का अर्थ है--विजयी, जिस ने रण जीत लिया हो । पूर्वापर प्रयोग से कितना अन्तर अर्थ में पड़ गया ! रणजित’ संस्कृत है। हिन्दी का रणजीत इस का रूपान्तर नहीं है । 'रण' संस्कृत में जीत' अपनी धातु है-रण को जीतने वाला' रणजीत' । 'देशान्तर' का अर्थ है स्वदेश से भिन्न देश; परन्तु 'अन्तरदेश' का अर्थ है---अपना देश और उस के साथ ही अन्य देश भी'। इसी तरह अन्तरविश्वविद्यालय अन्तर-राष्ट्रीय श्रादि । ‘अन्तरदेशीय' से भिन्न अन्तर्देशीय है। ‘अन्तर्देशीय पत्र'--देश के भीतर चलने वाला पत्र, जो देशान्तर के लिए नहीं ।