पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६०

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भूल से, एक बड़ी मुद्दत सज ‘अन्तर' के अर्थ में ‘अन्तर' का प्रयोग लोग करते रहे और राष्ट्रिय' भी ला झर संस्कृत की अटपटी सन्धि से ‘अन्ताराष्ट्रिय चलाते रहे ! आज भी कुछ लोग ( अपनी नासमझी से अब नहीं ) जिद से 'अन्तराष्ट्रिय' नहीं छोड़ रहे हैं ! ऐसी प्रवृत्ति से हिन्दी की सरल-सुन्दर पद्धति दूषित हो रही है ! अर्थ भी नहीं निकलता ! ‘अन्तर दें वह अर्थ कहाँ है ? 'अन्तर-राष्ट्रीय' भी गलत है। इस तरह समासे के बारे में आवश्यक-आवश्यक बातें संक्षेप से लिखी गई। यह पुस्तके वास्तव में हिन्दी व्याकरण की मोटी रूप-रेखा ही प्रस्तुत करने के लिए है । व्याकरण के मूल सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। जब हिन्दी-व्याकरण के पाठ्य-ग्रन्थ’ बनेंगे, तब ब्यौरे से कृदन्त, तद्धित, तथा समास आदि का अपने-अपने स्वतंत्र प्रकरणों में विस्तार हो गए ।

समास और द्विरुकि

कभी-कभी शब्दों की द्विरुक्ति होती है, जोर देने के लिए, या अधिंक्य- सातत्य आदि प्रकट करने के लिए । “बह श्राँखें लाल-पीली करने लगा मैं लाल और पीला' को समाप्त है। ‘लालपीली स्त्रीलिङ्ग अाँख' का विशेषः । परन्तु ‘अखें उस की पीली-पीली हो गई थी यहाँ पीली-पीली में एक ही शब्द की द्विरुक्ति है । इसे 'मास' न कहेंगे । यदि अधिक जोर देना हो, तो शब्द फ्री नहीं, अर्थ की द्विरुक्ति होती हैं; यानी उसी अर्थ का शब्दान्तर प्रयुक्त करना होता है—उस की आँखें लाल-सुख हो गईं। 'लाल' और 'सुर्ख' एकार्थक शब्द हैं। यह पथ्य-द्विरुक्ति है। पर्याय से उसी अर्थ को सम्पुष्ट किया गया है। इसी तरह पीला-जर्द उस का मुँह पड़ गया था । अत्यधिक पीलापन प्रकट होता है । ‘काल्दा-स्याह साँप पड़ा था' । 'काला' औंर स्याह' एक ही रंग के वाचक हैं। दोनों के एक साथ आने से रंग का इरादत्त प्रकट होता है । 'पढ़-चढ़ कर क्या करे गा’ ? मैं पढ़’ क्रिया की ही द्विरुक्ति है; क्योंकि क्रिया किसी अन्य भाषा की ग्राह्य नहीं और अपने यहाँ एक अर्थ में अनेक शब्द शक्तिशृहीत नहीं । ‘पढ़-पढ़ कर’-- अधिक पढ़ कर । इसी तरह ‘लिख-लिख कर उस ने मन कागज खराब कर दिए? मैं लिख' की द्विरुक्ति है । परन्तु पढ़-लिख कर में दो धातुओं को समास है।