पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६१

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समास में आकारान्त पुल्लिङ्ग संज्ञाएँ बहुवचन में प्रकारान्त हो जाती हैं--- बड़े-बूढे कहा करते हैं ‘बड़ा’ और ‘बुढा' शब्दों का समाप्त है। अनेक विशेषणों में भी--एक ॐ विशेषण कान कर सम्मान हो जाता हैं । 'ऋ' उभयत्र ६८” है-“वडे- बूढ़े । एकवचन में भी, जब ‘को' आदि कोई विभक्ति परै हो-

  • तू किसी बड़े-बूढ़े को भी नहीं मानता !' ।

‘ओं’ विकरण श्राने पर अगले शब्द का अन्त्य स्वर उड़ जाता है--

  • अपने बड़े-बूढ़ों से मैंने सुना था'

इसी तरह स्त्रीलिङ्ग में भी अगले शब्द पर असर पड़ता है- ‘लता-बल्लियों की शोभा निराली थी। ‘बल्ली-वल्लरी । जैसे -बीचे उन के बहुत हैं । पय्य-पुनरुक्ति है । समास फ्री ही तरह पुनरुक्ति में भी अगले शब्द पर असर पड़ता है, ' विकरण का । परन्तु- ‘बड़ों-बड़ों के उस ने दाँत खड़े किए हैं। यहाँ ‘बड़ी-बड़ी है। वहाँ बड़े-बूढ़ों से था | ‘बड़े-बूढ़ों की बात? होता है; परन्तु यहाँ बड़ी-बड़ों की बात है। बड़े-बड़ों की बात' क्यों नहीं ? सोचने की बात हैं। ‘बड़ों बड़ों के दाँत उसने खट्टे किए अदि प्रयोगों में समास नहीं है, शब्द की खुली द्विरुक्ति है। संबन्ध-प्रत्यय तथा विभक्ति को’ ने’ ‘से' आदि प्रत्येक शब्द में न ले कर अगले शब्द के सामने हैं, जो उभयत्र अन्वित हो जाती हैं । “राम, गोविन्द और माधव ने मिल कर वह काम किया है। वहाँ 'ने' विभक्ति “राम' तथा 'गोविन्द से भी अन्वित है। राम ने, गोविन्द ने और माधव ने अच्छा नहीं लगता । इसी लिए विभक्ति हिन्दी में प्रकृति से सटा कर नहीं लिखी जाती । संस्कृत में मधुरेण फलेन तुसि होता