पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६२

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( ३१७ ) है; विशेषण में भी विभक्ति लगती है। यदि ऐसा न हो, तो विशेषण से विभक्ति का अन्वय ही न हो ! वहाँ प्रत्येक पद सविभक्तिक रहेगा, जब तक समास न हो । समास होने पर ‘मधुरफलेन तृप्तिः एक विभक्ति से काम चल जाएगा । ‘मधुर’ ‘फल' के साथ बँध गयी न ! परन्तु हिन्दी में ऐसी बात नहीं है । ‘मधुर फल से तृप्ति' का चलन है । 'मधुर' तो “फल' का विशेष है ही, चाहे शब्द मिला कर लिखो, चाहे अलग लिखो। तब पृथक विभक्ति की जरूरत ही नहीं । इसी को स्पष्ट करने के लिए 'क' आदि सम्बन्ध प्रत्यय तथा को श्रादि बिभक्तियों का विभक्त प्रयोग होता है । यही स्थिति शब्द की द्विरुक्ति में भी है.“बड़ बड़ों से उसने लोहा लिया’ ‘छोटो छोटों को आगे बैठा दो लड़कों लड़कों को अलग कर दो' आदि । ‘बड़ों-बड़ों को भी लिख दें तो समास न समझा जाएगा । जहाँ (--) ऐसा चिह्न हो, वहाँ सर्वत्र समास ही न समझ लिया जाए गर । द्विरुक्त शब्दों के बीच में भी यह चिह्न आ जाता है, लगाया जाता है । ' यह चिंह कभी हर्ष प्रकट करता है, कभी विषाद और कभी आश्चर्य आदि। सो, (-} यह चिह्न सर्वत्र समास-सूचक नहीं है । 'बड़े-बूढ़ों से में विकरण ( औं ) एक जगह है, अगले शब्द में; क्योंकि दोनों का समास है। एक ही विकरण दोनो के लिए है। परन्तु ‘बड़ों बड़ों से' आदि में श्रीं विकरा उभयत्र है; क्योंकि यहाँ समोसे नहीं है । ‘क’ श्रादि प्रत्यय तथा विभक्तियाँ एक ही जगह रहें गी; पर अन्वय उभयत्र हो गः ।।

सामासिक प्रत्यय 'आ,ई

  • श्रा’ हिन्दी का पुंप्रत्यय तथा ‘ई स्त्री-प्रत्यय समास में यथास्थान काम

आते हैं । बहुव्रीहि समास में-- तिमंजिला मकान, तिमंजिले कोठे, तिमंजिली इमारत यहाँ ‘ा' तथा 'ई' प्रत्यय साफ हैं। ‘मंजिल' शब्द स्त्रीलिङ्ग है । बहु- ब्रीहि में 'अन्य' ( विशेष्य' ) की प्रधानता होती है । उसी के अनुसार लिङ्ग- वचन होते हैं । 'मंजिल स्त्रीलिङ्ग है; पर बहुश्रीहि समास होते ही उस में हिन्दी का पुंप्रत्यय ‘ा' लगता है और मंजिल' को मंजिला' कर देता है, यदि विशेष्य पुल्लिङ्ग हुअा, तो । तीन मंजिलें जिस में हों, वह मकान ‘तिमंजिला' । तीन मंजिलें जिस में हों, वे कोठे 'तिमंजिले' । तीन मंजिलें जिस में हों, वह इमारत तिमंजिली । इसी तरह हिन्दी का “तल भी