पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६३

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'दुतल्ला मकान, दुतल्ले कोठे, दुतल्ली इमारत ।

तल' के ल’ को द्वित्व हो गया है। बहुव्रीहि समास हैं और विशेष्य के अनुसार तथा 'ई' प्रत्यय हैं । द्वन्द्व में भी ‘' तथा 'ई' को प्रयोग होता है; जब कि “समाहार हो । ‘राह’ स्त्रीलिङ्ग शब्द है; पर समाहार-द्वन्टू में दुराहा’ तिराहा’ ‘चौराहा । दो राहो का समाहौर ( जमघट )-दुराहो। चार राहों को मिलन- चौराहा। ‘राह’ में पुंप्रत्यय ‘अ’ स्पष्ट है। दो सेरों का समाहार-“दुसेरी' । पॉच सेरों का सुसाहार-पंसेरी'। दो श्रानो का समाहार-“दुअनी' । चार अानों का समाहार-‘चवन्नी' आदि। यहाँ ‘दुराहा’ ‘चौराहा’ ‘सतनजा' पंसेरी’ ‘अठन्नी’ आदि एकवचन हैं। अब थे एक सुंज्ञाएँ ही बन गई । अब इन के बहुवचन तथा पुत्री-भेद भी हों गे, यदि वैसे प्रयोग हो । आठ श्राने में आने पुल्लिङ्ग-बहुवचन है; पर समाहार-द्वन्द्व समास कर देने पर ‘अठन्नी' स्त्रीलिङ्ग-एकवचन । चार राहे’ में ‘हे’ स्त्री-लिङ्ग बहुवचन है; पर समाहार-द्वन्द्व समास में ‘चौराहा’ पुल्लिङ्ग-एकवचन । संस्कृत में नपुंसक लिङ्ग एकवचन, या स्त्रीलिङ्ग-एकवचन होता है---‘पञ्चपात्रम्-‘पञ्चबटी' । हिन्दी ने नपुसक लिङ्ग इटा दिया; इस लिए पुल्लिङ्ग–एकवचन । अब इन की संख्या यदि विवक्षित हो, तो---

दोनो चौराहे, दोनो अठन्नियाँ

यों वचन-विन्यास हो यो । प्रयोग में बहुत सरलता है, समझने में चाहे देर लगे । भाषा अपने प्रवाह में चलती है। अनायास नाव उसी ओर स्वतः जाए गी; यदि जान-बूझ कर इधर-उधर कोई न करे। यह समासेन समास-प्रकरण हुआ ।