पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६४

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क्रिया-विशेषशा

क्रिया की प्रधानता भाषा या वाक्य में होती है। उसी के पीछे शेष सम्पूर्ण शब्द-जबात् है--सब उसी के अङ्ग हैं। क्रिया-पद ( प्रख्यात } विशेष्य है, शेष सब विशेष । 'खाता है। पढ़ता है' 'गया' 'झाए ग’

  • जाए' आदि ‘पदों से क्रिया का रूप प्रकट होता है। खाता है क्रिया-पद

प्रधान तो है; क्योंकि वही विवदित है; परन्तु पूरा मतलब न निकले , जन तक “कत' आदि का प्रयोग या अध्याहार न हो । राम खाता है। कहने से फर्तृत्व-विशिष्ट क्रिया का बोध हुआ । खाता है। सामान्य पद है--निर्वि- शेष । ‘राम खाता है' कहने से मतलब निकला कि खाने' का कर्ता राम’ है । यह ‘कर्ता एक तरह का क्रिया का विशेषण ही हुआ। इसी तरह

  • राम फल खाता है' कहने से फल' भी एक तरह का विशेषण ही हुआ---

फलों का खाना-- ‘फल भोजन' । इसी तरह करण, अपादान, सम्प्रदान तथा अधिकरण भी क्रिया के श्रङ्ग या विशेषण ही हैं । जहाँ-यहाँ' आदि अधिकरण प्रधान तथा जब-तब' आदि कालप्रधान ( सर्वनामिव) अव्यय से भी ( इस तरह की ) क्रिया की विशेषता ही प्रकट होती है। यों सभी शब्द एक तरह से क्रिया-विशेषण ही हैं । परन्तु ये सब स्वरूप-निष्पादक मात्र हैं। इन के नाम भी इसी लिए ‘क’ ‘कर्म आदि ऐसे हैं, जिन से कर्तृत्व आदि ही प्रकट होता है। परन्तु सर्वथा निराकाङ्क्ष या स्वरूप प्राप्त वाक्य राम अपने धर में फल खा रहा है। श्रादि में जब किसी शब्द से क्रिया की निष्पत्ति विशेष हँ से बतानी हो, तो उसे के लिए भिन्न शब्दों का प्रयोग किया जाता है । ‘खा रहा है' के पहले ‘जल्दी-जल्दी धीरे-धीरे' आदि शब्द दे दें, तो क्रिया की निष्पचि एक विशेष डॅग से प्रतीत हो गी । “राम फल खाता है' में खाता है’ साधारण क्रिया है । कैसे खाता है, सो कुछ पता नहीं । परन्तु “राम जल्दी- जल्दी लाता है' या धीरे-धीरे खाती है' कहने से क्रिया में एक विशेषता जान पड़ती है। ऐसे ही शब्द वा शब्दप्रयोग ‘क्रिया-विशेषण' कहलाते हैं। शीघ्र चलो' में शीघ्र क्रिया-विशेषण है ।