पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६५

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( ३२० ) गुणवाचक 'मधुर' आदि विशेषण जब संज्ञा के साथ श्राते हैं, तो { संस्कृत में } अपने विशेष्य के अनुसार रूप ग्रहण करते हैं । परन्तु ‘क्रिया में तो अपना’ कोई लिङ्ग-वचन-पुरुष आदि है ही नहीं । तत्र क्रिया-विशेषण ‘मधुर' आदि शब्दों का प्रयोग कैसे हो ? किसी न किसी रूप में ही तो शब्द का प्रयोग हो गई ! तो, क्रिया का विशेष सदा नपुंसकलिङ्ग एकवचन रहे, यह संस्कृत में व्यवस्था है ---सीता सधुरं गायति' ‘रासः मधुरं गायति' ‘बालकाः मधुरं गायन्ति' । हिन्दी में नपुंसक लिङ्ग है ही नहीं; इस लिए

  • सीता मधुर गाती है राम मधुर गाता है’ ‘बालक मधुर पाते हैं। यों ‘मधुर

क्रिया-विशेषण का निर्विभक्तिक प्रयोग ही गा ! तो भी, ‘मधुर' शब्द को यहाँ ‘प्रथमा का एकवचन' ही कहा जाए गा । पुल्लिङ्ग एकवचन समझिए । संस्कृत में नपुंसक-लिङ्ग एकवचन सामान्य-प्रयोग में आता है, हिन्दी में पुल्लिङ्ग एकवचनं । इसी लिए अकारान्त पुल्लिङ्ग विशेषण सदा स्व-रूप से स्थित रहते हैं---- १-लड़का अच्छा गाता है। २–लड़की अच्छी पाती है। ३-बालिकाएँ अच्छा गाती हैं। ४-हम अच्छह गाते हैं। ५-तुम अच्छा गाते हो संस्कृत में नपुंसक लिङ्ग एकवचन रहे गा । 'मधुर' श्रादि संस्कृत शब्द ( हिन्दी में ) ज्यो के त्यों प्रयुक्त होते हैं; नपुंसक-चिह्न ‘म्' इटा कर । और, मीठा' जैसे तद्भव शब्द अपनी पद्धति पर-सदा पुल्लिङ्ग एक वचन-- १–लड़की मीठा बोलती है। ३-लड़के मीठा पाते हैं। ३---तुम तबला बहुत मीठा बजाते हो । तबला' ( कर्म ) एकवचन है । “मीठा' क्रिया-विशेषण है । यदि कर्म बहुवचन ‘बाजे’ :आदि हो, तो फिर ( आकारान्त ) क्रिया-विशेषण के प्रयोग में कुछ भेद पड़ जाएगा । बाजे वे अच्छे बजाते हैं में ‘अच्छे विधेय विशेषण हैं, विधेयता क्रिया की ही है-—अतः उसी की विशेषता प्रकट है; पर कर्म के द्वारा । इसी लिए कर्म के अनुसार अच्छे हैं । परन्तु वस्तुतः (अच्छे’ ) ‘बाजे’ को विशेषण नहीं है । “म अच्छे बाजे ही बजाता है। यहाँ संज्ञा विशेष जरूर है।