पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६८

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( ३२३ ) आ जाएँ तो भी क्रिया-विशेषण इसी तरह रहेंगे-“खम्भे टेढ़े गड़े हैं? कपड़े अच्छे धुले हैं' इत्यादि । | पढ़ना' सकर्मक क्रिया है । अकसक प्रयोग में सीता अच्छा पढ़ती है जैसे क्रिया-विशेषण रहें गे । परन्तु कर्म की उपस्थिति में क्या हो गर ! पढ़ने का फल कर्म पर तो दिखाई नहीं देता ! “सीता पुस्तक अच्छी पढ़ती है। बोलने में अच्छा नहीं लगता। ‘पुस्तक' स्त्रीलिङ्ग के तुरन्त बाद अच्छा सुनने में भला नहीं लगता। वैसा सुनने का अभ्यास नहीं । और ‘अच्छा पढ़ने का कोई फल ‘पुस्तक' पर दिखाई नहीं देता । इस लिए क्रिया-विशेषण उस का पल्ला व्यर्थ क्यों पकड़े ? तब क्या हो ? ऐसी स्थिति में ‘तरह प्रकार आदि का सहारा लिया जाता है-- “सीता पुस्तक अच्छी तरह पढ़ती है'! अव सर्वत्र ‘अच्छी तरह रहेगा- सीता पुस्तक अच्छी तरह पढ़ती है। लड़का वेद अच्छी तरह पढ़ता है। मैं मोजन अच्छी तरह करता हूँ। यह प्रयोग-भेद केवल अकारान्त ( अच्छा-बुरा श्रादि) विशेषणों के प्रयोग में ही है। जो स्वभावतः अव्यय हैं; वे सदा एकरस रहते ही हैं- म खूब सोता है, खूब हँसता है। मैं अच्छे फल खूब खाता हूँ, खूब खिलाता हूँ रमा पुस्तके खूब पढ़ती है, खूब सोचती है। | इसी तरह धीरे-धीरे' आदि अव्यय समझिए। संस्कृत ( तत्सम ) विशेषण भी तद्वस्थ ही रहते हैं। क्रियाएँ भी परस्पर एक दूसरे की विशेषता निष्पन्न करती हैं, तब उन्हें भी ‘क्रिया-विशेषण' ही कहा जाए गा--- | 'सीता ने रोते-रोते कहा...' यहाँ रोते-रोते क्रिया--विशेषण है ‘कहने’ क्रिया का | सीता चलते- चलते थक गई' में ‘चलते-चलते' ( थकने } क्रिया का विशेषण नहीं,