पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३६९

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( ३२४ ) हैतु' है । बहुत चलने से थकान । परन्तु “रोते-रोते कहा' में ऐसी बात नहीं है। यहाँ क्रिया-विशेषण है रोते-रोते । रोने का फल कर्ता ( सीता ) में स्पष्ट दिखाई देता है। इस लिइ रोती-रोत बोली भी हो सकता है । परन्तु इस रूप में सीधे “बोलने में विशेष नहीं जान पड़ती; इस लिए झत का विशेषज्ञ कहते हैं । यह दूसरी बात है । कत में हो कर भी चीज अन्ततः क्रिया पर ही जा कर टिके थी, क्योंकि यही तो सब का विधेय थे। विशेश्य है । सीधे तौर पर जो क्रिया की विशेषता प्रकट करे, वह क्रिया- विशेषण स्पष्ट ) सीता ने रोते-रोते कहा' अदि में रोते-रोते’ बहुवचन नहीं है। भाववाच्य एकारान्त रूप है। सदः इसी तरह रहता हैं । न एकवचन, न बहुवचन और अन्वये सर्वत्र ।। कभी-कभी क्रिया से बहुत दूर भी उस का विशेषण रहने पर अन्वय में कठिनाई नहीं होती | ‘मैं चुपचाप पड़ने चला जाता हूँ यहाँ ‘चुपचाप’ क्रियार्थक क्रिया पढ़ने के पूर्व है; परन्तु अन्य ‘चल जाता हूँ क्रिया के साथ हैं | चुपचाप ‘पढ़ता नहीं है; ‘जाता है' चुपचाप । ‘चुपचाप पढ़ना चाहिए, यहाँ पढ़ना चाहिए' का विशेषण ‘चुपचाप' है ही; और :----

  • चुपचाप पढ़ना अच्छा होता है

यहाँ भी ‘चुपचाप' क्रिया-विशेषण ही है। पढ़ना’ ‘न'-प्रत्ययान्त भाव- वाचक संज्ञा है, जो वस्तुतः क्रिया का ही सामान्य रूप है। पूर्वकालिक क्रिया में-सीता चुपचाप पुस्तक पढ़ कर चली गई । चुपचाप यहाँ पूर्वकालिक क्रिया का विशेषण है, ( आख्यात 'चली गई ) का नहीं । सीता पुस्तक पढ़ कर चुपचाप चली गई यहाँ अवश्य चुपचाप’ आख्यात ( 'चली गई ) का विशेषण है । १-मुझे चुपचाप बैठे एक घंटा हो गया । २–बालक को चुपचाप खेलते बहुत देर हो गई। ३–हमें चुपचाप काम करते एक युग बीत गया !