पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७०

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इन उदाहरणों में बैठे खेलते' तथा करते भाववाच्य क्रिया-प्रयोग हैं और सर्वत्र चुपचाप' क्रियाविशेषण है। ‘घंटा देर' तथा 'युग' कर्ता कारक हैं----‘हो गया” “हो गई' तथा 'बीत गया क्रियाओं के । इन से उस क्रियाविशेषण का कोई संबन्ध नहीं । वह तो बैंठने की, खेलने की तथा { काम करने की विशेषता बतलाता है। इन क्रियाओं के कर्ता हैं---‘मैं 'बालक' तथा 'हम' । समय उतना निकल गया, इस पर जोर देने के लिए वैसे प्रयोग हैं-बैठने' आदि के “भावे' प्रयोग उस रूप में । यदि समय पर वैसा जोर न देना हो, तो फिर-- “एक घंटे तक मैं चुपचाप बैठा रहा। जैसे प्रयोग हों गे । क्रिया-विशेषण ज्यों का त्यों है । प्रेरणा तथा नामधातु श्रादि के भी सब रूप में क्रिया-विशेषण लगता है। क्रियार्थक क्रिया में विशेषता प्रकट करने के लिए ( क्रिया के साथ ) प्रायः ‘लिए अव्यय लगाते हैं मैं सुख से पढ़ने के लिए झलकते जा रहा हूँ यहाँ ‘सुख से विशेषण क्रियार्थक क्रिया ( ‘पढ़ने ) के साथ अन्वित है। मैं पढ़ने के लिए कलकत्ते बड़े सुख से पहुँचा' यहाँ ‘सुख से' का अन्वय ‘पहुँचा' क्रिया ( आख्यात ) से है। ‘से' विभक्ति लगने पर भी क्रिया-विशेषण होने में कोई बाधा नहीं है । संस्कृत में नपुंसकलिङ्ग एकवचन ‘सुखम् से काम चल जाता है— ‘रामः पाठशाल सुखं गच्छति'----राम पाठशाला सुख से जाता है। ‘सुखेन’ भी चलता है। हिन्दी में पु० एकवचन 'अच्छा' आदि उसी तरह रहते हैं । राम अच्छा पढ़ता है' में अच्छा के श्रीगे से श्रादि की जरूरत नहीं । परन्तु सुख' आदि का निर्विभक्तिक प्रयोग में हो गए। सारांश यह कि जिस शब्द से क्रियागत कोई विशेषता प्रकट हो, वह क्रिया-विशेषण । क्रिया की गिनती नहीं हो सकती; इस लिए इस के संख्यावाचक विशेषण नहीं होते। जो विशेषता न प्रकट करे, वह क्यों विशेषण ? हिन्दी के व्याकरणों में अब-तब, जहाँ-वहाँ, इधर-उधर आदि सभी अव्ययों को ‘क्रिया-विशेषण’ मान कर बड़े ही विस्तार से उदाहरणों का गोरखधन्षा फैलाया गया है ! ‘जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह पढ़ने जाता