पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७१

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(३२६ ) हैं। जब से भोजन करने में और तब से जाने में क्या विशेषता श्री गई ? 'जब-जिस समय और तब’---उस समय। यों ये कालवाचक अव्यय हैं । इसी तरह ‘जहाँ-कहाँ आदि स्थान-वाचऊ और इधर-उधर आदि दिशा-वाचक अव्यय हैं। इन से क्रिया में कोई विशेषता नहीं जान पड़ती । वैसे तो कत-कर्म आदि सभी कारक और संबन्ध’ तथा सभी अव्यय क्रिया के ही अङ्ग हैं—सभी उस के विशेषण ही हैं; परन्तु इन सब की विशेषता ऐसी है कि उधर सब को ध्यान नहीं जाता । वह विशेषता कोई नहीं, जो जान ही न पड़े। फिर, उन के नाम भी अलग-अलग कत' आदि रख दिए गए हैं; क्योंकि कर्तृत्व आदि की ही वहाँ प्रधानता है । विशेषणत्व दब गया है। विशेषवाचकपदसन्निधाने सामान्ययान्चकृपदानां तद्न्यपरत्वम्----जब विशेषवाचक शब्द विद्यमान हो, तो सामान्यवान्चक पद उसे स्पर्श नहीं करता । ‘क्रिया-विशेषण' यो सामान्य पद है, कर्ता, कर्म अधिकरण आदि 'विशेष' पद ! क्रिया की विशेषता ये

  • कत' आदि के रूप में प्रकट करते हैं। परन्तु कुछ शब्द-प्रयोग ऐसे हैं,

जिन्हें ‘क्रिया-विशेषण’ ही कहते हैं। ये केवल क्रिया की विशेषता ही प्रकट करते हैं, और कुछ नहीं—'मैं चुपचाप पढ़ता हूँ। 'चुपचाप' क्रिया ( पढ़ने ) की विशेषता प्रकट करता है । इसी तरह धीरे धीरे' यादि अव्यय हैं । परन्तु ‘अब-जब’ आदि श्रादि अव्ययों से क्रिया की कोई वैसी विशेषता प्रकट नहीं होती । इस का तथा अन्य ( फारक, बाध्य, वाच्य-परिवर्तन, प्रेरणा अदि. से संबन्ध रखने वाली ) शतशः गलत धारणाओं का विस्तार से निराकरण अपने ब्रजभाषाब्याकरण के भूमिका-भाग में मैं ने किया है। जिन की इच्छा हो, वहीं देख सकते हैं । हाँ, “ज्यों-त्यों अदि प्रकारवाचक सर्वनामिक अव्यय अवश्य क्रिया- विशेषण के रूप में आते हैं-ज्यों-त्यों कर के मैं पहाड़ पर चढ़ तो गया ।” यहाँ ‘ज्यों त्यों कर के क्रिया-विशेषण है-चढ़ने की कठिनाई प्रकट करता है। सूर का ब्रजभाषा-पद्यांश- त्यों-त्यों नाचें मोहन ज्यों-ज्यों रई घमरको होय री’ मैं ज्यों-ज्यों' और 'त्यों-त्यों से क्रियागत उत्तरोत्तर विकास सूचित होता है। परन्तु क्यों' केवल प्रश्न में आती है---क्रिया-विशेषण के रूप में नहीं । हाँ, इसी प्रकृति का कैसा' सार्वनामिक विशेष अवश्य क्रिया की विशेषता