पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७२

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( ३२७ ) प्रकट करने के काम में लगाया जाता है। वैसी स्थिति में इन आकारान्त विशेषणों को एकारान्त रूप मिल जाता है--एकवचन में भी एकारान्त ! क्रिया-विशेषण एकवचन रहता ही है, यदि क्रिया से सीधा सम्बन्ध हो---- १-तू कैसे इतना लिख लेता है ? २-जैसे तुम उतना पीस लेती हो | दोनो उदाहरणों में कैसे-जैसे' तथा 'इतना-उतना’ क्रिया-विशेषण हैं। एक से प्रकार और दूसरे से परिमाणु सूचित होता है। यह पानी कैसा है। में कैसा पानी का प्रकार पूछने में संज्ञा-विशेषण है और ‘त कैसे इतना लिख लेता है' में कैसा क्रिया के करने का प्रकार पूछता है। ये सदा पुल्लिङ्ग एकवचन ( एकारान्त ) रहें गे- १०» तुम जैसे बने, चले जाओ। २--ऐसे तुम कैसे चली जाओ गी ? ३---आप इतना क्यों सोच रही हैं ? ४–लड़की कितना परेशान हुई । कितना' क्रिया-विशेषण हैं। परेशान होना क्रि या है। लड़की कितनी परेशान थी' में कितनी’ विशेषण है परेशान’ का, जो कि स्वयं ‘लड़की का विशेषण है। यानी ‘कितनी’ शब्द यहाँ ‘प्रविशेषण है । यदि प्राशस्त्य- अर्थ में ऐसा आदि का प्रयोग हो, तो ‘अ’ को ‘ए’ नहीं होता-“शंभू महाराज कत्थक-नृत्य ऐसा नाचते हैं कि क्या कहा जाए ! १-राम आजकल बहुत पढ़ता है। २–आज राम के यहाँ बहुत लोग अाए हैं। पहले उदाहरण में बहुत क्रिया-विशेषण है और दूसरे में लोग का संख्यावाचक विशेषण' । क्रिया का परिमाण क्रिया-विशेषण बतला रहा है। संख्या तत्त्वतः यहाँ १ क्रिया में ) होती ही नहीं । एक प्रासंगिक बात । दोनो ‘बहुत’ शब्द' यहाँ भिन्न-प्रकृतिक जान पड़ते हैं। संस्कृत में प्रभूत' शब्द परिमाण बताने के लिए है और 'बहु' संख्या बाचक है----यद्यपि कहीं इसका भी परिमाणवाचक ( क्रियाविशेषण के भी )