पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७६

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( ३३१ ) ऐसी क्रियाएँ बताने के लिए धातुओं के रूप काम में लाए जाते हैं---सोता है-जागता है; श्रादि । यानी बोलने वाला केवल यह बताना चाहता है कि इस समय गम क्या कर रहा है, या किस स्थिति में है। इसी लिए कत राम' आदि पहले बोल कर, तब सोता है सो रहा है' इत्यादि क्रिया-पद की प्रयोग होता है। जब क्रिया की अपेक्षा कर्ता पर ही अधिक जोर देना हो, तब यह क्रम बदल जाता है—कृत का ही पर-प्रयोग होता है-*सोता तो है राम ! सुन्ध्या के छह बजे से सुबेरे आठ बजे तक एक करवट !” यहाँ

  • 1म’ (फत ) का पर-प्रयोग है, जोर देने के लिए। विधेय तो क्रिया ही है,

वही मुख्य है; परन्तु कर्ता की विशेषता प्रकट करने के लिए पर-प्रयोग। कर्म का प्रयोग साधारणतः कृत के अनन्तर और क्रिया के पूर्व होता है--‘राम पुस्तक पढ़ता है। परन्तु कर्म पर अधिक जोर देना हो, तो इस का पर-प्रयोग होता है---- ‘राम पड़े गा वेद, औरों की हम जानते नहीं यहाँ 'वेद' पर जोर है। मतलब यह है कि राम साधारणं चीजों से आगे बढ़ कर गहन वेदों का अध्ययन करे गा । अन्य पठनीय चीजों के लिए दूसरे लोग हैं। और कालू पढ़े गा गन्दे उपन्यास ! इसे अपने पाठ्य अन्यों से क्या मतलब !' यहाँ ‘गन्दे उपन्यास' ( कर्म ) का पर-प्रयोग है। वहीं जोर है। यदि करण का प्रयोग करना हो, तो कर्ता के अनन्तर ही साधारणतः इस का स्थान है- शिवा जी ने अपनी तलवार से विजय प्राप्त की यदि करण पर अधिक जोर देना हो, तो इस का भी पर-प्रयोग हो जाए या--- 'शिवा जी ने विजय प्राप्त की थी अपनी तलवार से | इस का अर्थ यह निकले या कि उन के पास अन्य ( सम्पत्ति या पैतृक राज्य-सैन्य आदि ) साधन न थे, जैसे कि औरंगजेब आदि को प्राप्त थे। केवल तलवार के बल पर ही उन्हों ने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी ।