पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७७

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(३३२)

( ३३२ ) प्रथम ( साधारण ) प्रयोग में यह बात नहीं । वहाँ कर पर उतना जोर नहीं मालूम देता ! सम्प्रदान का प्रयोग भी साधारणतः कर्ता के अनन्तर ही होता है-- मोहन ने गरीब को पैसा दिया परन्तु सम्प्रदान पर अधिक बल देने के लिए पर-प्रयोग किया जाता है--

  • मोहन ने पैसा दिया गरीब को और धक्का दिया उस दुष्ट को ।

अपादान का प्रयोग कर्ता से भी पहले प्रायः होता है--- ‘फूलों से सुगन्ध आ रही है। अपादान पर अधिक बल देना हो, तो पर-प्रयोग--- ‘सुगन्ध तो भाई श्राए गी फूलों से ही !' अधिकरण का प्रयोग साधारण स्थिति में कर्ता के अनन्तर होता है- ‘भोहन घर में रोटी खा रहा है। श्रधिकरण पर बल देने के लिए पर-प्रयोग--- मैं तो भाजन करूँगा अपने घर में ही यदि अधिकरण पर नहीं, कर्म पर जोर देना हो, तो फिर इसे ( कर्म ) का ही पर-प्रयोग हो गए ! ‘मै अपने घर में तो करूं गा भोजन और काम करू गो सेवाश्रम में यानी ‘सेवाश्रम में भोजन न क ा' । वह काम करने की जगह है । क्रिया-विशेषण प्रायः क्रिया के साथ ही आता है; परन्तु कभी-कभी पृथक् ( दूर ) भी रहता है, फिर भी अन्वय में कोई बाधा नहीं पड़ती; यह सब श्रभी पिछले ही अध्याय में देखा जा चुका है। सो, वाक्य-गठन के संबन्ध में साधारणतः कोई जटिल व्यवस्था नहीं है। यही तो सब से बड़ा कारण है कि हिन्दी बहुत जल्दी आ जाती है और इसी लिए देश भर में स्वतः यह ऐसी फैली कि राष्ट्रभाषा और राजभाषा का पद इसे प्राप्त हो गया।