पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३७९

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( ३३४ ) विष में अमृत का आरोप है । इस लिए पहले ‘विष’ का प्रयोग होना चाहिए, उस के बाद अमृत' का । लाभो, विष अमृत है ठीक हो ग । वामन भगवान् के लिए

  • जिस की गृहिणी लक्ष्मी, वह भी कहीं कुछ माँगने के लिए लघुता प्राप्त

करे; यह विडम्बना !' यहाँ ‘लक्ष्मी जिस की गृहिणी' यों पद-प्रयोग चाहिए। परन्तु ‘उस की स्त्री लक्ष्मी है। घर सँभाल लिया ।' यहाँ लक्ष्मी का पर- प्रयोग उचित है। किसी पितृभक्त के वाक्य में–नारायण हैं मेरे पिता ठीक नहीं। वह अपने पिता को ही नारायण समझ रहा है; इस लिए--

  • पिता मेरे नारायण हैं प्रयोग होना चाहिए। हाँ, कोई भगवान् का अनन्य

भक्त कह सकता है—‘नारायण हैं मेरे पिता'। यह नारायण' में 'पिता' का आरोप है। गुरुता आदि से पदों का क्रम-भेद | पदों की अपनी बनावट से भी पूर्वापर प्रयोग भाषा ग्रहण करती है। स्त्री’ में एक ही स्वर है, 'पुरुष' में तीन हैं। ‘लघु का पूर्व प्रयोग होता है, गुरु' का उस के अनन्तर । वाक्य में या द्वन्द्व आदि समासों में स्त्री का पूर्व प्रयोग हो गा--‘क्या स्त्री, क्या पुरुष, सभी भीड़ में पड़ कर बेहाल हो गए ।' यहाँ ‘क्या पुरुष, क्या आ' ठीक न रहे गा / अन्वयवोध में कोई बाधा पड़ती हो, था अर्थ-भ्रम होता हो; सो बात नहीं है। केवल बोलने में अच्छा नहीं लगता। लधुता से गुरुता की ओर जाए, तो अच्छा लगता है; पर गुरुता से लघुता की ओर जानी भला नहीं ! “नर' तथा 'नारी' में ( स्त्री-पुरुष का ) व्यतिक्रम' है । इनर में दो ही मात्राएँ हैं; “नारी' में चार । इस लिए पहले नर का प्रयोग हो गा, फिर 'नारी' का । 'स्त्री-पुरुष की तरह नारी-भर’ न हो। गा। 'अमीर' और 'गरीब' में समान स्वर हैं, वजन भी बराबर है। परन्तु

  • गरीब' के देश में एक व्यंजन है, एक स्वर है; जब कि 'अमीर' का श्राद्य

अक्षर ‘अ’ केवल स्वर है। इसी लिए अमीर-गरीब हो गा, गरीब-अभीर नहीं । “अभीर' के पूर्व प्रयोग में और कारण यहाँ ( श्रेष्ठता आदि ) भी हो सकता है। 'विषमप्थमृतं भवेत् क्वचित् अमृतं वा विषमीश्वरेच्छया-विधि की विडम्बना ! कहीं विष भी अमृत बन जाता है और अमृत भी दिख