पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३८२

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( ३३७ ) आदि–तथा संबन्ध' के संबन्ध में भी यही बात है । क्रिया के रूप से हीं जहाँ फुर्ता की निश्चित और असन्दिग्ध उपस्थिति स्वतः हो जाए, वहाँ शब्दशः उस का प्रयोग एक फालतु ही चीज हो ग--- १-जाम्रो और तुरन्त उसे साथ ले आओ २--जा, दूध पी । ३-कलेकले जाना, तो महाजातिसदन अवश्य देखना इन प्रयोगों में क्रिया के रूप से ही कार्ता ( ‘तुम' 'तू' और 'तुम' ) स्वतः सामने आ जाते हैं ; इस लिए ‘तुम जाओ' 'तू जा’ “तुम बाना' इस तरह पृथक् कर्ता-निर्देश अनावश्यक है । इसी तरह- “जाऊँ गा, तो आप से पहले मिल लें गा' यहाँ मैं कृत स्वयं उपस्थित हो जाता है । “जाऊँ गा' अदि का कत 'मैं' के अतिरिक्त और कोई हो ही नहीं सकता । जहाँ ऐसी बात न हो, वहाँ स्पष्टतः कर्ता को निर्देश करना ही होता है । ‘जाता है’ ‘जाते हैं आदि क्रियाओं के कर्ता स्वतः उपस्थित नहीं होते; क्योंकि इन के अनन्त कता हो सकते हैं । “जाऊँ गा' की तरह (इसी “पुरुष' का बहुवचन रूप) *आएँ गे' कर दें, तो हम' की उपस्थिति न हो गी; क्योंकि अन्य पुरुष के भी बहुवचन में यही रूप क्रिया का होता है ।। | हाँ, यदि कर्ता या कर्म पर कुछ जोर देना हो, तो अवश्य--- 'मैं कहता हूँ कि तू चुप हो जा’ यहाँ मैं' से कर्ता का बल ध्वनित होता है और मध्यम पुरुष ( 'तू' ) कमजोर जान पड़ता है। कम से कम वका का तात्पर्य यही है। मैं और

  • तू हटा लें, तो यह विशेषता उड़ जाए गी ।

“कहानी कहता हूँ, चुप हो जा'। एक साधारण प्रयोग है। इसी तरह ‘कर्म' कारक- अब राम बोलता है, फूल से झड़ते हैं २२