पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३८३

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( ३३८ ) यहाँ ‘बोलना' क्रिया ( सफर्मक होने पर भी } अकर्मक रूप से प्रयुक्त है- कर्म १ ‘शब्द' आदि ) का प्रयोग नहीं किया गया है; क्योंकि उस की उपस्थिति स्वयं ही सामर्थ्य से हो जाती है। शब्द ही बोला जाता है । जो बोला जाए, शब्द ही है। इस लिए चब राम शब्द बोलता है ऐसा प्रयोग मुद्दा लगे गरे ! हाँ, ‘अब राम बातें करता है' में बातें ठीक है। ‘कृरने के न जाने कितने कर्म हो सकते हैं । “बातें करता हैं-बोलता है। कोई विशेषण देना हो, त३ अवश्य- 'मीठे बचन बोल कर सब को, बिना मोल तू मोल ले २’ यहाँ 'वचन' कर्म कारक का प्रयोग हो गा ही, “मीठे विशेषण देने के लिश् । ‘मोल ले-खरीद लें। यदि क्रिया-विशेषण के रूप में मीठापन अ जाए, तब फिर अरूरत नई--- ‘मीठा बोल, पूरा तोल ‘मीठा' यहाँ क्रिया-विशेषण है।

  • मेघ बरसता है, तब अन्न होता है। यहाँ कर्म ( पानी ) का प्रयोग

अनावश्यक है । अब भेध पानी बरसता है' कहें, तो भद्दा लगे गा; कि मेध पानी ही तो बरसता है । | कृरण---‘मा बच्चे को भोजन कराती है। यहाँ करण ( 'हाथ') स्वतः आ जाता है । इस लिए म बच्चे को हाथ से' ( या अपने हाथ से ) कहना अच्छी नहीं लगता । परन्तु विशेष स्थल मैं- "घर में शतशः सेवक-सेविकाओं के होते हुए भी वह अपने बच्चों को अपने हाथ खिलाती-पिलाती है? यहाँ अपने हाथ करण कारक का उचित प्रयोग है। हाथों' के श्रागे ‘से विभक्ति नहीं; क्योंकि उस की उपस्थिति स्वतः हो जाए गी । “हाथ' के आगे यहाँ ( ‘खिलाती-पिलाती है क्रिया की उपस्थिति में ) से विभक्ति ही लग सकती है, अन्य कोई ( में' ' आदि } नही ।। अधिकरण ‘मेघ बरसता है, तो हरियाली ही हरियाली चारो ओर दिखाई देती है।' अधिकरण 'पृथ्वी' श्रादि शब्दों की जरूरत नहीं; क्योंकि