पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३८७

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( ३४२ ) सर्वत्र 'के' 'रे' विभक्तियाँ हैं---क-रस । इसी तरह 'ने' भी--‘अपने ऊपर'--'अपने इधर-उधर आदि । सारांश यह’ कि ‘अनुसार' अव्यय को संज्ञा समझने का परिणाम कि 'द की आज्ञानुसार श्रादि को गलत समझ लिया गया और ज्ञानु- सार' आदि में 'तत्पुरुष समास समझ कर ( ‘अनुसार’ को पुल्लिङ्ग भेद्य मान कर ) 'आप के आज्ञानुसार जैले गलत प्रयोग लोग' करने लगे थे--- हिन्दी के बड़े-बड़े विचारक इस भ्रम में पड़ गए थे ! ‘अर्थ’ शब्द भी अव्यय के रूप में आता है-अप के अर्थ मेरी सब सम्पत्ति है । इस लिए आप की सहायतार्थ ठीक है - ‘श्राप के सहायतार्थ नहीं । यदि ‘अर्थ’ संज्ञा हो, तव तत्पुरुष' अवश्य हो या-----अप के शब्दार्थ ने झमेला पैदा कर दिया’ ‘अप का फलितार्थ ठीक है। प्रयोग के पूर्वापर का विचार प्रयोग में पूर्वापर-प्रयोग का विचार रखना जरूरी होता है । भेदक और भेद्य झा सह-प्रयोग चाहिए । एक ‘पत्र’ का शीर्षक देखा-भारत और कोरिया की सन्धि वार्ता' । जान पड़ता है, भारत और कोरिया में झगड़ा था ! कितना भ्रम सम्भव है ! भेद्य-भेदक वाला अंश सदा पहले चाहिए- ‘कोरिया की सन्धिवार्ता और भारत' अब कोई भ्रम नहीं। इसी तरह---

  • राम और श्याम के लड़के में झगड़ा हो गया

यदि ‘राम' से झगड़ा हुआ हो, तब तो ठीक, परन्तु “राम के लड़के से झगड़ा हुआ हो, तो फिर उपर्युक्त प्रयोग गलत कहा जाए गा | वैसी स्थिति में राम के अागे पृथकू स्वतंत्र के रखना हो गा ---राम के और श्याम के लड़कों में' । या लड़के' में । राम के लड़के में और श्याम के लड़के में मतलब निकल जाएगा । ‘लड़के दोनों भेदक में लग जाएगा । ‘कृ’ को प्रयोग अन्यत्र भी भ्रासक कर दिया जाता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में राजपताका के अपमान को ले कर एक हंगामा खड़ा