पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३८८

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( ३४३ ) हो गया था। इस पर दिल्ली के एक समाचार-पत्र ने भोटर शीर्षक दे कर टिप्पणी दी थी । शीर्षक था- दो इस्लामी देशों की टक्कर ऐसा श्रमास किं दो इस्लामी देश मिल कर किसी को टक्कर दे रहे हो । चाहिए, था--‘दो इस्लामी देशों में टक्कर । सो, मेद्य-भेदक का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए; यद्यपि इस में कोई उलझन था दिक्कत की बात नहीं है ।

अशत शब्द

जिसे शब्द में अभीष्ट अर्थ देने की शक्ति हो, उसी का प्रयोग करना चाहिए । अशक्त पर्यों के प्रयोग से भाषा बिगड़ती है। य तो छोटे बचौं के टूटे-फूटे अटपटे शब्दों से भी मतलब निकाल ही लिया जाता है और काम चल ही जाता है; परन्तु शिष्ट भाषा में पदों का गुम्फन बिशेष प्रकार का होता है। कोई पद ऐसा न होना चाहिए, जो अभीष्ट अर्थ देने में अशक्त हो । उदाहरणार्थ कितने ही प्रान्त की हिन्दी साहित्यिक भाषा है इस के लिए

  • हिन्दी अन्तःप्रान्तीय साहित्यिक भषि हैं' लिखना गलत हो गी । “अन्तः-

प्रान्तीय' शब्द उस अर्थ के देने में असमर्थ है। ‘अन्तर-प्रान्तीय' चाहिए ।

    • प्रान्त के भीतर का यह प्रश्न है इस के लिए--'यह तो अन्तःप्रान्तीव प्रश्न

है' कइ सकते हैं। इंटर यूनिवर्सिटी के अर्थ में 'अन्तर्विश्वविद्यालय गलत है; अन्तर्-विश्वविद्यालय' चाहिए। "बलिया में पचास श्रादी भूख मरे' शीर्षक दे कर एक अख- बार ने विवरण दिया था कि अन्नाभाव से पन्चास की मृत्यु हो गई। तब ‘भूखों मरे’ गलत प्रयोग है-“भूख से मरे’ चाहिए । “भूखों मरना' और चीज है-“भर पेट रोटी न मिलना' । ‘भूखों मर र हो, तब भी काम चल छाए गई । | इसी तरह हिन्दी भारत की अन्तर-भाषा है' यहाँ ‘अन्तर' शब्द अभीष्ट अर्थ देने में असमर्थ है। राष्ट्रभाषा' की अगह अहमदाबाद नव जीवन' तथा कई अन्य पत्र ‘श्रान्तर-भाषा का प्रयोग करने लगे हैं; परन्तु इस अन्तर' शब्द से वह अर्थ नहीं निकलता, थिस के लिए इस का प्रयोग