पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३९०

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‘राजदूत' के लिए कुछ पत्र-सम्पादक निःस्वार्थ' शब्द लिखने लगे हैं, जो कि हिन्दी में अप्रसिद्ध है । सीधा ‘राजदूत' चाहिए; कम शक्ति रखने चाली ‘उप राजदूत' । सब राजदूतों के ऊपर कोई पद बनाया जाए, तो ‘महा-राजदूत' | 'निःसुधार्थ हिन्दी में ठीक नहीं । इसी तरह, इसी तरह के पत्र ( दिल्ली के हिन्दुस्तान' अदि) 'राजनैतिक' के अर्थ में ‘राजनयिक । कुछ दिन से लिखने लगे हैं। ‘नीति' तथा 'राजनीति' हिन्दी के सुगृहीत शब्द हैं। इन की जगह नय' तथा राजनय’ चलाना (और सो भी समाचार-पत्रों में ) क्या अर्थ रखता है ? पाठक झमेले में पड़ते हैं । हिन्दी जैसी सरल भाषा को ऐसे शब्दों से लोग अटपटी बना रहे हैं ।। इसी तरह आधारित' के अर्थ में ‘धृत' अप्रसिद्ध है। हिन्दी में ( सुविचारित तथ्य' की तरह ) “हमारा संगठन महात्मा जी के सिद्धान्तों पर आधारित है' सब समझते हैं। काशी का एक पत्र आज कल ‘धृत' चला रहा है-यह तो घटनाओं पर अधृत है ?' इस हिन्दी को कोई तभी समझ सकता हैं, जब बारह वर्ष तक काशी में संस्कृत पढ़े ! साधारण जन ‘आधारित' मजे से समझ लेते हैं। हाँ, उपकृत विकृत अादि शब्द अवश्य हिन्दी में गृहीत हैं। भाषा की आव: श्यकता, प्रकृति, 9 वाह और जनता या पाठ का ध्यान रख कर ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए । गोस्वामी तुलसीदास ने उचित शब्दों का प्रयोग किया है; इसी लिए उन की 'रामचरितमानस' वैसा महत्त्व रखता है । ग्राम्यता और अश्लीलता शब्दों का प्रयोग करते समय ग्राम्यता और अश्लीलता जैसे दोषों से भी बचना चाहिए। कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें साहित्य में स्थान मिल जाता है और कुछ इस से भिन्न-जनता के साधारण व्यवहार में ही आते हैं । साहित्य सार्वदेशिक होता है; अतएव वहाँ ऐसे शब्दों का ही प्रयोग होना चाहिए, जो शिष्ट-गृहीत हौं, साहित्य में समादृत हों। यह दूसरी बात है कि श्रावश्यक शब्द हम जन-बोलियों से लें । यदि किसी अर्थ के लिए कोई शब्द जरूरी है, तो कहीं से ले सकते हैं; लिया ही जाता है । जैसे-जैसे किसी भाषा का तथा उस के साहित्य का क्षेत्र बढ़ता जाता है, वैसे ही वैसे उस के लिए पद-- प्रयोग में संकुचित क्षेत्र से आगे बढ़ना पड़ता है । हिन्दी (जो अब राष्ट्रभाषा है) किसी समय (मेरठ के इधर-उधर) दो-तीन जिलों की ही भाषा थी । उस