पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३९५

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( ३५० ) यद‘राम दशरथ--पुत्र है। यों सभा में या 'राम दाशरथि है? यौं तद्धित से। कमजोर पड़ जाता है । ‘क’ भी मूलतः तद्धित-प्रत्यय ही है; पर विशिष्ट प्रयोग है । भेदक्क बनाता है। बहुत साफ थह किं यदि भेदक तथा विशेष पर जोर देना हो, तो सुभास न करना चाहिए; क्योंकि समास में इनका जोर घट जाता है । यदि कोई विशेष बात न हो, तब समस्त था तद्धितान्त विशेषण चलते ही हैं-'लताकुसुम-वैध उपाय' आदि। “यह मिर्जापुर की लाटी है और यह मिर्जापुरी लाठी है' में लो अन्तर है, समझने की चीज है। और 'ई' दोनो ही हिन्दी- तद्धित हैं । विशेषता बतलाने के लिए 'ई' अच्छा रहेगा ।। विशेषण देने में जातीयता का भी ध्यान रखना चाहिए । शब्दों की भी जाति होती है । एक प्रकृति के शब्दों की एक जाति, दूसरी प्रकृति रखने वालों की दूसरी जाति । किसी जाति का नाम “हिन्दी', किसी का फारसी और किसी का अंग्रेजी' । एक जाति के शब्द दूसरी जाति में भी घुल-मिल जाते हैं। हिन्दी ने अपनी पड़ोसिन ( फारसी श्रादि ) जातियों से कुछ

  • विशेषण' वर्ग के भी शब्द लिए हैं; परन्तु किसी दूरस्थ । थोरपीय अादि )

जाति के ऐसे शब्द ( विशेषण ) नहीं लिए हैं। संज्ञाएँ अवश्य ली हैं; पर विशेषता ( विशेषण ) या रँग-हँग निजी । क्रियाएँ तो सर्वथा अपनी हैं ही । परन्तु फारसी आदि से शाम विशेषणों का भी प्रयोग एक व्यवस्था से है। उर्दू-शैली से हिन्दी में खूबसूरत लड़का' खूबसूरत बगीचा चलता है; परन्तु खूबसूरत शिशु' या खूबसूरत उद्यान' नहीं चलता। यहाँ ‘सुन्दर' विशेषण ही सुन्दर रहे गा । हाँ, ‘सुन्दरे बागीचा' ‘सुन्दर महल’ ऐतराज की चीज नहीं ।।।

पदों की पुनरुक्ति

पीछे कहाँ जा चुका है कि जिस पद की उपस्थिति स्वतः सामर्त्य से हो जाए, उस का प्रयोग एक तरह का पिष्ट-पेषण ही है। कारक आदि के संबन्ध में कही गई यह बात सर्वत्र समान रूप से लागू है। *जितनी उन्नति हिन्दी ने उस समय की, उतनी उन्नति उसके बाद अब तक नहीं की । यहाँ दूसरा उन्नति पद (पुनरुक्त) दोष है ! *उतनी उस समय के बाद काफी है। दूसरी ‘की' की जगह कर सकी' जैसी पद ठीक रहे बा ।