पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/३९८

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में चढ़ जाता है। सन्देह हो, तो दूसरा पद 'सेवा' दे दो ! इसी तरह हिन्दी के एक बहुत बड़े कवि अभिज्ञ' को 'भिज्ञ' लिखते हैं ! यहाँ ‘न-समास' का ‘अ’ उन्हें भ्रम में डाल देता है। वे समझते हैं कि अभिज्ञ” तो अज्ञ’ हो गया ! इसी तरह ज्योत्स्ना के वजन पर लोग भत्र्सना’ को ‘भुल्न लिख देते हैं ! नहीं मालूम, तो 'चाँदनी' लिखो। ऐसे शब्दों की सूची देना ठीक नहीं । प्रकृति-प्रत्यय आदि की जानकारी न होने से भी गलत शब्द चल पड़ते हैं और इस तरह की गलतियाँ सामान्यतः सब से हो रही हैं। परन्तु अब हिन्दी की स्थिति दूसरी है। अब इसे खूब सँभल कर चलना है, जिस से एक भी पद गलत न पड़े। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं; यद्यपि पीछे पूरे ग्रन्थ में इन पर विस्तार से विचार हो चुका है। शुद्ध रूप---लताएँ, विद्याएँ, आज्ञाएँ, विधवाएँ अशुद्ध रूप—लतायें, विद्यायें, अाज्ञायें, विधवायें शुद्ध रूप---एँ, जाएँ, पढ़ाएँ-लिखाएँ, सोएँ, धोएँ अशुद्ध रूप-आयें, जायें ( जायँ ), पढ़ायें-लिखायें, सोयें, धोयें शुद्ध रूप---श्राप गा, जाए या, पढ़ाए गा, सोएगा अशुद्ध रूप-आये गा, जाये गा (जायगा), पढ़ाये गा, सोये गा शुद्ध रूप--राम को पुस्तकें पढ़नी चाहिए अशुद्ध रूप-राम को पुस्तकें पढ़नी चाहिएँ शुद्ध रूप-राम को वेद पढ़ना चाहिए अशुद्ध रूप- राम को वेद पढ़ना चाहिये २३