पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०१

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( ३५.६ ) हैं। यहाँ एकत्र ठीक । परन्तु एकत्रित की तरह अपरत्रित' अदि न होंगे। संस्कृत में 'तत्र-अन्न' से 'तक्रब’---‘अत्रत्य' विशेषण बनते हैं; एर ‘क’ से एकत्रल्य' नहीं । हिन्दी ‘एकत्र” से “एकत्रित’ बना लेती हैं। संस्कृत का “एकत्र” और वहीं का ‘इत' प्रत्यय; दोनों को मिला कर चीज अपनी एकत्रित । विशेष काम है; इस लिए पुनरुक्ति हो रही है। ये सव बातें पीछे श्रा चुकी हैं, परन्तु हिन्दी में अाजकल को अराजकता फैली हुई है, उसे देखते बार-बार कोई बात दुहरानी पड़ती है। इस प्रकार, विशेष उद्देश्य से, कोई बात बार-बार कहने को संस्कृत में अभ्यास' कहते हैं । प्रौद दार्शनिक ग्रन्थों में अभ्यास' शब्द--प्रयोग अाप देख सकते हैं । । | ‘दुहराना' ही ले लीजिए। इसे लोग दोहराना' लिखने लगे हैं ! ‘दोहरे कपड़े मिले” लिखते हैं ! ‘दो हरे कपड़े भी पढ़े-समझे जा सकते हैं, यदि पाई जरा विच्छिन्न हो जाए ! परन्तु बोलने में तो सदा ही भ्रम सम्भावित है। हाँ, अवधी आदि में ए-‘श्रो' ह्रस्व भी होते हैं और वहाँ ‘दोहरी' ( दोहरी ) चलता है। इकतारा’ को ‘एकतारा' बना रहे हैं ! | परन्तु “इफन्नी' दुअन्नी’ अठन्नी' को 'कानी’ ‘दो आनी श्राद्वानी' अभी तक नहीं बनाया गया है; यह हिन्दी का सौभाग्य ! पूर्वी अञ्चल में अवश्य ‘इक्का' की एक्का' बोलते हैं; ‘ए’ को कुछ हलका कर के; परन्तु राष्ट्रभाषा फा टकसाली रूप ‘इक्का' है । एका’ अलग चीज है । शुद्ध रूप हैं----दुपहरी, दुगुना, तिगुनी, दुक्षरी अशुद्ध रूप--दोपहरी, दोगुना, तीनगुना, दोहरी ठेठ हिन्दी के, विदेशी या तद्भव शब्दों में पर-सवर्ण' कर के ‘गुण्डा डण्डा’ जञ्जीर' आदि लिखना गलत है-गुंडा, डंडा, जंजीर श्रादि चाहिए। यदि समास न हो, तो वाक्य में तुम से हम ने तीन गुना ज्यादा काम किया है। यों ‘तीन' रहे गा; “ति' ने ही गा । यहाँ गुना’ प्रत्यय नहीं है । छह' के 'ह' का लोप हो जाता है-'छमाही । बृत्ति में ‘मास’ को ‘माह' हो जाता है; इस लिए ‘तिभाही'.---छमाही को

  • तिमासी-‘छमासी' नहीं बोला जाता । इसी भास’ को ‘इन’ तद्धित

प्रत्यय { स्वार्थे ) आने पर भी 'माह' हो जाता है । घुम्सि में प्रथम दीर्घ स्वर