पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०२

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( ३५१७ ) ह्रस्व हो ही जाता है। अन्त्य ‘अ’ का लोप–अन्त में घुविभक्ति (आ)-- ‘महीना । ‘महीना' हिन्दी का तद्भव शब्द है । कभी ‘स' ज्यों का त्य रहता है—'यह बारहमासी नौकर हैं। इसे बारहमाही न हो गई । “हुसूती' एक सोटा कपड़ा होता है--दुहरे सूत से बुना हुआ । इसे 'दोस्ती' लिखना- बोलना गलत हो राr | समास में उत्तर पद संस्कृत ( तद्रूप } शब्द हो, तो फिर पूर्वपद् ( संख्यावाचक } भी वैसा ही रहे गा–‘सप्तर्षि-मण्डल' या

  • सप्त-ऋषि-मण्डल' । “सत-ऋषि न होगा। बिना समास के भी ऐसे बँधे

हुए शब्द तदवस्थ रहेंगे---‘सत शील सतु शिला' । सात शिला'-. सिद्धान्त न कहा जाए गा । इसी तरह द्विसूत्री योजना' चतु:सूत्री योजना सशसूत्री कार्यक्रम' प्रयोग हीं गे - न कि ‘दोसूत्री’ ‘चारसूत्री' आदि ! 'दो' से ‘सूत्र' का नहीं, सूत' का ससास हो गा और तब ‘दुसूती' शब्द बने - उस कपड़े का वाचक । “द्विसूत्री' पृथक् चीज है, विशेषण है। इसी तरह ‘त्रिमूर्ति’ ‘पञ्चानन' आदि समझिए। हिन्दी-शब्दों से

  • तिराहा’ ‘पँचमेल' सतनजा' आदि समास पृथक पद्धति पर हैं।

‘हिन्दूसभायी विधानसभायी' जैसे प्रयोग गलत हैं। तद्धित प्रत्यय ‘ई है, ‘यी' नहीं-शहरी’ ‘देहाती' । आकारान्त शब्दों में-एशियाई, हिन्दूसभाई। कहीं 'आ' का लोप भी–अफरीकी, अमरीकी । कहीं ह्रस्व-‘गुंडई’ ‘पंडई । लिङ्ग-वचन आदि से भी गलत प्रयोग न होने चाहिए । 'भिखारिन को लोग ‘भिखारिणी' लिख देते हैं, जो गलत है। कार्यकारिणी का ध्यान आ जाता हो गा ! 'गरीबनी” या “परीधिनी' अवश्य चलता है—गरीबन नहीं । विशेषण के रूप में तो गरीब ही रहे गा गरीब औरत' । परन्तु स्वतन्त्र ( जातिवाचक संज्ञा-जैसा ) प्रयोग करना हो, तो स्त्री-लिङ्ग में,

  • गरीबनी रहे। कभी-कभी 'गरीब' भी–‘क्या गरीबनी बेचारी मर

जाए !’ ‘चली गई गरीबिनी। ब्रजभाषा में—“गरी मति दीजो, मो गरीबिनी को ज्ञायो !’ कभी 'गरीब' भी रहता हैं---‘मर जाए गी गरीब’ | परन्तु

  • भिखारिणी' या भिखारिनी नहीं होता ।।

इसी तरह ‘वचन' के भी गलत प्रयोग हो जाते हैं-“प्रत्येक पंसारी बेचते हैं ! ‘बेचता है' चाहिए।. प्रत्येक' तथा 'हर एक सदा एकवचन मैं चलते हैं। गरीब से गरीब भी आम खा लेते हैं गलत है। खा लेता है। चाहिए।