पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०३

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१ ३५८ ) अनेक-कैतृक या अनेक-कर्मक क्रियाएँ वाक्य में जब कोई क्रिया ऐसी आ जाती है, जिस का अन्वय भिन्नलिङ्ग और भिन्नवसन अनेक कता-कारकों से या बैंसे कर्म-कारकों से हो, तब सोचन होता हैं कि क्रिया का लिङ्ग-वचन आदि किस के अनुसार हो ! *पुरुष-भेद में भी यही स्थिति सामने आती है। पहले 'पुरुष' ही लीजिए-- राम, तू और मैं . थे तीन कता-कारक हम रखते हैं, “चलना’ क्रिय के । वर्तमान काल रख लीजिए, चाहे भविष्यत् । रास, तू और मैं चलँ गा' ठीक नहीं । सब के लिए बहुवचन चलेंगे’ ठीक; परन्तु 'मैं' के अनन्तर ही चलेंगे' अच्छा नहीं लगता । ऐसी जगह है सामान्ये ) अन्यपुरुष का प्रयोग होता है। मध्यम पुरुष तथा उत्तमपुरुष का क्षेत्र बहुत संकुचित है---अन्यपुरुष का क्षेत्र अनन्त है। इसके लिए सामान्य-प्रयोग अन्य पुरुष में होता है। बहुवचन में सब तो सामने ही है । दोनो, तीनो, चारो आदि समष्टिवाचक संख्या भी सामने आ सकती हैं। राम, तू और मैं--( तीन ) चलें गे । सब यो दोनो-तीनो आदि का प्रयोग चीज साफ कर देता है। अन्य पुरुष कोई यदि अन्त में क्रिया के पास---रखा जाए, तो अधिक अच्छा रहेगा--- 'मैं, तू और राम चलें गे’ यदि कोई अन्य पुरुष कर्ता न हो, तो फिर दोनो” जैसा सामान्य शब्द लाना अच्छी हो गा--- मैं और तू, दोनो बाजार चलेंगे। तू और मैं, दोनों बाजार चले गे, या फिर समुच्चय से-- मैं बाजार जाता हूँ और तू भी। तू भी बाजार जाता है और मैं भी

  • पहले वाक्य की ‘जाता हूँ क्रिया ‘तू' के साथ है'–रूप से आ मिलती

है और दूसरे वाक्य की ‘है?क्रिया 'मैं' के साथ 'हूं' के रूप में श्री मिलती है । बहुवचन में-