पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(३५९)


‘हम तुम दोनों चलें गे, | यदि दोनो' शब्द न दें, तो फिर उत्तमपुरुष का प्रयोग अन्त में ( क्रिया के समीप ) करना हो गा; क्योंकि सामान्य-प्रयोग अन्यपुरुष होता है और अन्यपुरुष के बहुवचन में जो रूप क्रिया का होता है, वहीं ( वर्तमान में ) उत्तमपुरुष का भी लड़के जाएँ गे’ ‘हम जाएँ गे' । सो, सामान्य--प्रयोग में उत्तमपुरुष ( बहुवचन ) कर्ता को अन्त में रखना अच्छा- तुस और इमे मथुरा चलेंगे । | एकवचन दो फल हों, तो क्रिया बहुवचन हो ही जाए गी; परन्तु लिङ्ग भिन्नता विचारणीय है। समष्टि में खासान्य प्रयोग पुल्लिङ्ग होता है और ‘कशेष' भी- मेले में लाखों श्रदमी और औरतें आई थीं? ऐसा प्रयोग अच्छा नहीं ।

  • लाखों स्त्री-पुरुष अाए थे?

ठीक । औरतें आदमियों के साथ ही तो हैं-इसी लिए ‘एकशेष' ('स्त्री' का प्रयोग न कर के }--- मेले में लाखों आदमी आए थे' ‘आदमी' से औरतों का और बच्चों का भी बोध हो जाता है। परन्तु जहाँ स्त्रीत्व की भी विवक्षा हो, वहाँ एकशेष' को अवकाश नहीं । साधारणतः मोह न नारि नारि के रूप’ स्थिति है-स्नी फ़ा सुन्दर रूप देख कर कोई स्त्री मोहित नहीं होती । परन्तु सीता जी का रूप ऐसा था कि उसे से स्त्रियाँ भी मोह गई-- ‘देखि रूप मोहे नर-नारी नर-नारी मोहे-नरनारी मोडिद हो गए ! सामान्य पु०-प्रयोग है। सीता जी का वर्णन है; इस लिए अकलुवा मोङ्कत तुलसी को विवक्षित है, जो कि ‘नारी' शब्द की आकांक्षा रखती है। नरनारी' में द्वन्द्वसमास है। और अन्तिम पद के अनुसार क्रिया-शब्द की कल्पना की जा सकती है; परन्तु हिन्दी में ऐसी जगह सामान्य प्रयोग होता है-पु० अन्यपुरुष । नर और नारी, सब मोहित हो गए ! 'नरनारी मोही नहीं, ‘मोहे' ।