पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०७

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ऐसे प्रयोग भी होते हैं। धन-सम्पत्ति आदि सभी चीजों को सब कुछ में समाविष्ट कर के क्रिया में एकवचन ‘चला गया । कर्म में भी

  • तुम्हें धन-सम्पत्ति, राज-अधिकार, सब कुछ मिले ग’

उद्देश्य और विधेय की भिन्न-लिङ्गता जैसे अनेक 'कर्ता' या ‘कम कारक, भिन्नलिङ्ग होने पर, विचारणीय होते हैं, उसी तरह उद्देश्य और विधेय की भी लिङ्ग -भिन्नता समझिए । रूप्य रूपक सम्बन्ध भी ‘बेटी किसी दिन पराए घर का धन होती है यहाँ बेटी’ उद्देश्य है और इन विधेय है। क्रिया होती है' ( स्त्री लिङ्ग ) 'बेटी' के अनुसार है । विधेय ‘ध’ पुल्लिङ्ग है। विवक्षा की दृष्टि से विधेय प्रधान होता है; परन्तु अन्वय की दृष्टि से उद्देश्य पर प्रायः प्रधानता रहती है। ‘बेटी' कर्ता है, ‘होती है क्रिया है। बेटी होती है। क्या होती है ?... पराये घर का धन होती है। विधेय रूप से धन' का प्रयोग होने पर भी क्रिया का अन्वये “बेटी' ( क ) से है। इसी तरह--- सम्पत्ति ही झगड़े का कारण बनी ‘उन की सहानुभूति ही मेरा सहारा थी परन्तु इस के विपरीत प्रयोग भी देखे खाते हैं- ‘झूठ बोलना उस की आदत थी। ‘नेताओं को रिहा करना मूर्खता होगी अध्ययन-अध्यापन ही उन की सम्पत्ति थी इन्हें र्यों नहीं कर सकते झूठ बोलना आदत था,

  • रिहा करना मूर्खती हो गा,

‘अध्ययन-अध्यापन सम्पत्ति था' भद्द रूप हैं ! क्या कारण ? ‘बोलना करना अध्ययन-अध्यापन कृदन्त भाववाचक संज्ञाएँ हैं। तो, विशेष नियम बनाया जा सकता है कि