पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०८

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( ३६३ ) कृदन्त भाववाचक संज्ञाए जब उद्देश्य-रूप से हों, तो क्रिया विधेय के अनु- सार रहती है। अपवाद तो सभी नियमों के हो सकते हैं। भाषा के अनन्त पारावार का कोई ठिकाना है ! इसी लिए सर्वे विघयः सापवादाः' हा गया है--सभी विधियों के ( नियमों के ) अपवादः संभावित हैं। परन्तु यह विधि भी तो अपवाद ही है ! उत्सर्ग ( मुख्य और व्यापक नियम ) तो यह है कि उद्देश्य के अनुसार क्रिया के लिङ्ग--वचन आदि होते हैं । इस नियम का यह अपवाद कि कृदन्त भाववाचक संज्ञाए, यानी सामान्य क्रिया के वाचक शब्द यदि उद्देश्य रूप से प्रयुक्त हों, तो क्रिया विधेय के अनुसार अपने लिङ्गवचन अादि रखे गई । अब इस पर यह जरूर सोचा जा सकता है कि श्राखर यह अपवाद सामने आया क्यों ? बात यह है कि क्रिया के अपने लिङ्ग-बचन या पुरुष के भेद होते नहीं । क्रिया में लिङ्ग–वचन आदि संभव नहीं । द्रव्य' शब्दों के अनुसार वह अपने लिङ्ग-वचन आदि प्रदर्शित भर करती है। लड़की, लड़की, घोड़ा, हाथी, पहाड़ जंगल आदि ‘द्रव्य--' शब्द हैं, जो गिने जा सकते हैं और ‘जिन में पुंस्त्रीभेद भी है। ये द्रव्य-शब्द कभी कत और कभी कम के रूप में आ कर क्रिया को अपने पीछे चलाते हैं। कभी-कभी क्रिया किसी मी 'द्रव्य' शब्द के पीछे न चल कर अपना अलग मार्ग ग्रहण करती है, तब उसे “भाववाच्य' कहते हैं । भाववाच्य क्रिया में भी कोई लिङ्ग--बचक स्वभावतः नहीं है; परन्तु शब्द का व्यवहार तो किसी न किसी रूप में ही हो गा न ! हिन्दी में पुल्लिङ्ग सामान्य-प्रयोग में आता है। जिस की। गिनती होती ही नहीं, उस का एकवचन ही सामान्य-प्रयोग हो मा । सो, भाववाचक संज्ञा पुल्लिङ्ग–एकवचन रहती हैं; यद्यपि उन में वस्तुतः न पुंस्त्व है, न एकत्व-बहुत्व जैसी संख्या ही है। पढ़ना’ ‘उठना’ और ‘अध्ययन’--‘उत्थान' आदि हिन्दीसंस्कृत के भाववाचक कृदन्त शब्द हैं । “पढ़ना' अदि में स्पष्टतः हिन्दी की पुविभक्ति लगी है और अध्ययन अादि का भी यहाँ पुल्लिङ्ग में ही प्रयोग होता है। ये सब सामान्य क्रिया--वाचक शब्द हैं । श्रख्यात' से काल-वचन आदि की विशेषता मालूम देती है---करता है, करे गा, किया, कर, किया करता हूँ, करते हैं, करती है, करती हैं, आदि। परन्तु ‘करना' से क्रिया के सामान्य रूप को ही ज्ञान होता है; किती काल-बचन या पुरुष आदि का नहीं ।