पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४०९

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तो, अब कि ‘कुरना' आदि में अपना’ कोई लिङ्ग--वचन है ही नहीं---जो दिखाई देता है, वह वास्तविक नहीं, तब कोई ‘क्रिया' इस का क्या अनुसरण करे ? क्रिया का अनुसरण क्रिया क्या करे ? “करना' आदि का व्यवहार द्रव्य (संज्ञा) की तरह होता है, जरूर; परन्तु हैं ये वस्तुतः क्रिया-शब्द ही । “कृदभिहितभावो द्रव्यवद् भवति--कुंदन्त क्रियाएँ ‘द्रव्य ( संज्ञा ) की तरह चलती हैं-यानी पुंस्त्व आादि तथा एकवचन' आदि का आरोप होता है और को’ ‘से अादि विभक्तियाँ भी लगती हैं । परन्तु इन का यह द्रव्यवत्’ प्रयोग इन्हें द्रव्य' न बना दे गा । जब द्रव्य' नहीं, तो फिर “क्रिया' इस के अनुसार क्या चुले ? इसी लिए, ऐसे स्थल में क्रिया, 'विधेय' का पल्ली पकड़ती है-“झूठ बोलना उस की आदत थी'...

  • इस समय नेताओं को रिहा करना भूर्खता हो गी ।।

| अच्छा यह चीज तो यों समझ में आई; परन्तु कुछ और प्रयोग १.---'हिज्जे और रूपान्तर का प्रमाण हिन्दी हो सकती है? २.---इस घोर युद्ध का कारण प्रजा की सम्पत्ति थी । ३-उन की आशा तुम्हीं हो प्रथम दो उदाहरणों में क्रिया स्त्रीलिङ्ग है, विवेय के अनुसार और तीसरे में मध्यम पुरुष है तुम्हीं' ( विधेय ) के अनुसार । यहाँ तो भाववा- चक कृदन्त सुंज्ञाएँ उद्देश्य रूप से नहीं हैं न । तब फिर विधेय का अनुगमन क्यों ? ‘प्रमाण’ और ‘कारण' कृदन्त हैं; पर ‘भाववाचक नहीं हैं । | प्रश्न ठीक जान पड़ता है-ठीक है। परन्तु यहाँ क्रियाएँ वस्तुतः उद्देश्य के ही अनुसार हैं। पूर्वापर प्रयोग में व्यतिक्रम हो जाने से उद्देश्य में विधेय् झा भ्रम होता है। इस तरह प्रयोग कीजिए -- १-हिन्दी हिजे तथा रूपान्तर का प्रमाण हो सकती है। २--प्रजा की सम्पत्ति ही इस घोर युद्ध का कारण थी ३---तुम्हीं उन की आशा हो ।

  • प्रयोग में पूर्वपर का क्रम बदले जाने से न उद्देश्य विधेय बन जाता है।

और न विधेय ही उद्देश्य हो जाता है। सो, उन उदाहरों में क्रियाएँ उद्देश्य के ही अनुसार हैं । और