पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४१०

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(३६५)

( ३६५ ) ‘राज्य एक थाती थी अहाँ क्या बात है ? सम्पत्ति कारण थी जैसी बात यहाँ नहीं है । कोई कारण?--कार्य भाव नहीं हैं। श्रौर, वह स्त्री एक रत्न थी। की तरह अरोष का विषय भी नहीं है । 'स्त्री' से रत्न' ( हीरा आदि ) अपनी पृथक् सत्ता रखते हैं। 'स्त्री' में ( दुर्लभता आदि सामान्य घर्मों के कारण ) रत्न” की आरोप है। सादृश्य में तात्पर्य है। परन्तु राज्य’ और ‘थाती में वह भेद नहीं है। राज्य से ‘थाती’ और ‘थाती' से 'राज्य' पृथक् नहीं। दोनों की एकरूपता है। इस लिए- १--राज्य उन के पास थाती थी। और २-थाती उन के पास राज्य था यों द्विधा प्रयोग इस के हो सकते हैं । थाती के रूप में उन के पास राज्य था यह मतलब । संस्कृत में भी ऐसे स्थलों में कामचारः' की व्यवस्था है—जैसा जी चाहे, प्रयोग कर लो। कहीं-कहीं- कोयला जल कर राख हो गई ऐसे प्रयोग देखे जाते हैं—“कोयला जल कर राख हो गई ऐसे प्रयोग उस साधारण नियम के विरुद्ध हैं। कोयला जल कर राख हो गया' य उद्देश्य के अनुसार क्रिया चाहिए। तब जल कर यह पूर्वकालिक क्रिया भी संगत हो गी । 'समानकर्तृत्व' चाहिए, पूर्वोत्तर-कालिक क्रियाओं में । जला कोयला और 'हुई खि’ यह क्या हुआ ? कोयला जला और राख बन गया; ठीक । ‘सब चिन्ताएँ दूर हो कर मन निर्मल हो गया' में ‘होकर' पूर्वकालिक क्रिया नहीं है । 'कर' यहाँ ‘हेतु' प्रकट करता है। हिन्दी का यह ‘कार' प्रत्यय क्रिया की पूर्वकालिकता तो प्रकट करता ही है; इस के अतिरिक्त अन्य काम भी करता है। परन्तु “कोयला जल कर मैं तो 'कर' जलने की पूर्वकालिकता ही प्रकट झरता है; हेतु श्रादि नहीं । 'कोयला जलने से राख हो गई’ का कोई मतलब नहीं ।