पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४११

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उद्देश्य-विधेय भाव कभी-कभी विवक्षाधीन होता है । वैद्य हमारे नारायण हैं यहाँ वैद्य उद्देश्य है । और, ‘नारायण हमारे वैद्य हैं' यहाँ नाराय उद्देश्य और वैद्म’ बिचे है। अशोक की राजधानी पटना थी' में राजधानी उद्देश्य है--उसी पर जोर है, उसी के संबन्ध में कुछ कहना है । परन्तु पटना बड़ा पुराना नगर है। यह बड़े-बड़े राजा की राजधानी रह चुका है ।' यहाँ पटना शहर का वर्णन है; वही उद्देश्य है। राजधानी’ विधेय है । 'यह' से पटना का परामर्श है-यह राजधानी रह चुका है। सादृश्य-मूलक उद्देश्य-विधेय भाव में सब उद्देश्य ( उपमेय ) दब जाता है, तब विधेय ( उपमान ) के अनुसार ही क्रिया रहती है • लोकमान्य तिलक के साथ श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और लाला लाजपत राय बड़े ओरों का काम झर रहे थे । ये दो उन की प्रबल भुनाएँ थीं ।' यहाँ से उन दोनों नेताओं का परामर्श नहीं है। ये विशेषण हैं भुजाओं का है ये भुजाएँ थीं। इस तरह उद्देश्य ( उपमेय ) के दब जाने को संस्कृत में 'निगीण' होना कहते हैं । दो' की जगह दोनो’ कर दें, तब रूक हो ग–उद्देश्य सामने रहे गा- ये दोनो उन की दो भुजाएँ थे। ये दोनो’--श्री सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और लाला लाजपत राय । अब 'ये' से दोनों नेताओं का परामर्श है। सर्वनामों के प्रयोग। वाक्य में सर्वनाम के प्रयोग बड़ी सरलता से स्वतः ठीक होते जाते हैं; परन्तु अपनी अधिक बुद्धिमानी खर्च कर के लोग उन्हें बिगाड़ देते हैं । उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा-परिषद् का प्रमाण-पत्र देखिए--*प्रमाणित किया जाता है कि कुमारी विजयश्री वाजपेयी १६५३ की हाई स्कूल परीक्षा में उत्तीर्ण हुई । उन्हों ने हिन्दी में विशेष योग्यता प्राप्त की । इन की जन्म तिथि ८ जून १९४० है ।। | क्या मतलब ? उन्हों ने योग्यता प्राप्त की’ और ‘इन की जन्मतिथि जून १९४० है ।' योग्यता किसी ने प्राप्त की और जन्मतिथि किसी की बताई जा रही है ! थई अविक बुद्धिमानी प्रकट करने का फल है ! सोचा होगा, जहाँ-प्रमाणपत्र लिखा जा रहा है, वहाँ ‘विजयश्री' उपस्थित नहीं है, बहुत दूर बैठी है ! इस लिए 'वह' का प्रयोग--53न्ह नै । परन्तु प्रागे फिर् सर्वनाम अपनी गति पर–‘इन की। ध्यान रखना चाहिए कि दूरी और समीपता मानसिक स्नी होती है। विक्षयश्री' का प्रमाणपत्र लिखा जा रहा है,